अहिंसा के पुजारी गांधीजी थे फुटबॉल प्रेमी, भारत नहीं, इस देश के लिए खेलते थे मैच

सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी फुटबॉल प्रेमी भी थे और कभी उन्होंने फुटबॉल खेला भी था, इसके बारे में कम लोगों को ही पता होगा।

Asianet News Hindi | Published : Oct 2, 2019 5:26 AM IST / Updated: Oct 02 2019, 11:01 AM IST

नई दिल्ली। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को सत्य और अहिंसा के पुजारी के रूप में पूरी दुनिया में जाना जाता है। देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए उन्होंने जो अहिंसक संघर्ष चलाया, उसकी मिसाल दुनिया में कहीं नहीं मिलती। लेकिन गांधीजी फुटबॉल प्रेमी भी थे और किसी समय उन्होंने इस खेल में भागीदारी भी की थी, इसके बारे में कम लोग ही जानते होंगे। आज 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी के जन्मदिवस पर हम उनके व्यक्तित्व के इस रोचक पहलू के बारे में बताने जा रहे हैं। 

इंग्लैंड में फुटबॉल के प्रति आकर्षित हुए
गांधीजी जब शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड गए तो वहां उन्हें कई चीजों के प्रति रुचि पैदा हुई। फुटबॉल से भी वे वहीं परिचित हुए। उस समय पढ़ाई और दूसरी व्यस्तताओं के चलते उन्होंने इस खेल में ज्यादा रुचि नहीं दिखाई, लेकिन इस खेल के प्रति उनका आकर्षण बना रहा। 

साउथ अफ्रीका में बनाया फुटबॉल क्लब
कानून की शिक्षा हासिल करके गांधीजी भारत लौटे। इसके बाद एक मुकदमे के सिससिले में उन्हें दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। दक्षिण अफ्रीका में उन दिनों रंगभेद जोरों पर था। अंग्रेज वहां के स्थानीय निवासियों और भारतीयों के साथ भी जानवरों जैसा व्यवहार करते थे। गांधीजी को स्वयं इसका कड़वा अनुभव मिला था। दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी ने रंगभेद के खिलाफ अहिंसक आंदोलन की शुरुआत की। वहीं उन्होंने देखा कि वैसे लोग जो अपेक्षाकृत कम पैसे वाले हैं, उनके बीच फुटबॉल बहुत लोकप्रिय है। यह देख कर इस खेल के प्रति उनकी पुरानी रुचि जाग गई। उन्हें यह भी लगा कि इस खेल से जुड़ कर इन लोगों के बीच अंग्रेजों के अत्याचारों के खिलाफ अहिंसक विरोध की अपनी नीति का वे प्रचार कर सकते हैं। इसके बाद गांधीजी ने तीन फुटबॉल क्लब की शुरुआत की। उन्होंने डरबन, प्रेटोरिया और जोहान्सबर्ग में फुटबॉल क्लब की स्थापना की। इन तीनों फुटबॉल क्लब को 'पैसिव रेसिस्टर्स सॉकर क्लब' कहा जाता था, जिसका मतलब था अहिंसक विरोध करने वालों का फुटबॉल क्लब।

इन क्लबों के लिए खेला 
गांधीजी वैसे तो नियमित फुटबॉल नहीं खेलते थे, क्योंकि उनकी व्यस्तता बहुत ज्यादा थी। लेकिन कहते हैं कि जिन क्लबों की उन्होंने शुरुआत की थी, उनके लिए कभी फुटबॉल खेला भी था। वैसे वे अक्सर फुटबॉल के मैचों में जो भीड़ जुटती थी, वहां अंग्रेजों के रंगभेद कानून के खिलाफ पर्चे और पैम्फलेट्स बंटवाते थे, ताकि उनमें जागरूकता बढ़े और वे उनके आंदोलन से जुड़ सकें। उन्होंने फुटबॉल क्लब के आयोजनों का इस्तेमाल अपने आंदोलन को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से किया, क्योंकि इनमें काफी भीड़ जुटती थी। गांधीजी के प्रयासों से वहां ट्रांसवाल इंडियन फुटबॉल एसोसिएशन, क्लिप रिवर डिस्ट्रिक्ट इंडियन फुटबॉल एसोसिएशन और सबसे फेमस साउथ अफ्रीकन एसोसिएशन ऑफ हिंदू फुटबॉल की स्थापना हुई। इससे पता चलता है कि गांधीजी में संगठन बनाने की कितनी क्षमता थी। इन सभी एसोसिएशन और क्लबों के जब मैच होते थे तो जो भारी भीड़ जुटती थी, उनके बीच गांधीजी और उनके सहयोगी रंगभेद के खिलाफ प्रचार करते थे और लोगों को अंग्रेजों के काले कानूनों का विरोध करने के लिए प्रेरित करते थे।  

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