Russia ने चली बड़ी चाल US समेत पश्चिमी देशों में मचेगा हाहाकार, Putin की Letter Diplomacy से मची खलबली

यूक्रेन विवाद के बाद रूस ने दो अलगाववादी क्षेत्रों को देशों के रूप में मान्यता दे दी है। रूस की मान्यता के बाद यूएस के नेतृत्व वाले नाटो देश उससे खफा हैं। रूस पर वह लगातार प्रतिबंध लगा रहे हैं। लेकिन इन सबके बावजूद इन पश्चिमी देशों को प्राकृतिक गैस के लिए काफी हद तक निर्भरता है।

Asianet News Hindi | Published : Feb 22, 2022 7:47 PM IST

दोहा। रूस (Russia) ने कतर (Qatar) के साथ द्विपक्षीय संबंधों (Bilateral relations) को सुधारने की पहल की है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) ने दोनों देशों के बीच संबंधों को और मजबूत करने के लिए आपसी हित और मुद्दों पर एक पत्र भेजा है। यह पत्र कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल थानी (Emir Sheikh Tamim bin Hamad al-Thani) को लिखा है। पुतिन का पत्र अल-थानी को रूस के ऊर्जा मंत्री निकोले शुलगिनोव (Nikolay Shulginov) ने दिया है। रूस के मंत्री दोहा में एक गैस एक्सपोर्टर्स समिट के लिए पहुंचे हैं।

क्यों रूस कतर के साथ संबंध प्रगाढ़ करना चाहता?

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यूक्रेन विवाद के बाद रूस ने दो अलगाववादी क्षेत्रों को देशों के रूप में मान्यता दे दी है। रूस की मान्यता के बाद यूएस के नेतृत्व वाले नाटो देश उससे खफा हैं। रूस पर वह लगातार प्रतिबंध लगा रहे हैं। लेकिन इन सबके बावजूद इन पश्चिमी देशों को प्राकृतिक गैस के लिए काफी हद तक निर्भरता है। ऐसे में रूस से रास्ता बंद होने की स्थिति में कतर ही एक ऐसा निर्यातक है जो पश्चिम को मांग के अनुरूप आपूर्ति कर सकता है। 

ऐसे में संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ यूरोप को प्राकृतिक गैस की आपूर्ति को बदलने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। ऐसे में वह कतर से समझौता करना चाहते हैं। क्योंकि कतर अगर राजी नहीं हुआ तो उर्जा संकट की स्थितियेां से इनको सामना करना पड़ सकता है। उधर, रूस ने कूटनीतिक चाल चलते हुए कतर को अपने पाले में करने के लिए पहल कर दी है। रूस के राष्ट्रपति की चिट्टी के बाद दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों में अगर प्रगाढ़ता आती दिखी तो यूएस समेत अन्य पश्चिमी देशों को उर्जा संकट से दोचार होना पड़ सकता है। 

कतर, यूएस और यूरोपियन यूनियन से क्या चाहता?

दरअसल, कतर चाहता है कि अमेरिका यह गारंटी दे कि यूरोप में डायवर्ट की गई प्राकृतिक गैस को फिर से नहीं बेचा जाएगा। साथ ही सारी जांच पड़ताल का हल निकाले ताकि वह नियमित ग्राहक बनने के साथ यूरोप पर प्राकृतिक गैस निर्भरता को शिफ्ट कर सके।

सोमवार को रूस ने दो देशों को दी थी मान्यता

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सोमवार को विद्रोहियों के कब्जे वाले यूक्रेन के डोनेट्स्क और लुगांस्क क्षेत्रों की स्वतंत्रता को मान्यता दी थी। इन दोनों को अलग देश के रूप में पुतिन ने मान्यता देते हुए अपने रक्षा मंत्रालय को अलगाववादियों के कब्जे वाले क्षेत्रों में शांति व्यवस्था का कार्य संभालने का निर्देश दिया।

यह है विवाद की वजह

रूस यूक्रेन की नाटो की सदस्यता का विरोध कर रहा है। लेकिन यूक्रेन की समस्या है कि उसे या तो अमेरिका के साथ होना पड़ेगा या फिर सोवियत संघ जैसे पुराने दौर में लौटना होगा। दोनों सेनाओं के बीच 20-45 किमी की दूरी है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन पहले ही रूस को चेता चुके हैं कि अगर उसने यूक्रेन पर हमला किया, तो नतीजे गंभीर होंगे। दूसरी तरफ यूक्रेन भी झुकने को तैयार नहीं था। उसके सैनिकों को नाटो की सेनाएं ट्रेनिंग दे रही हैं। अमेरिका को डर है कि अगर रूस से यूक्रेन पर कब्जा कर लिया, तो वो उत्तरी यूरोप की महाशक्ति बनकर उभर आएगा। इससे चीन को शह मिलेगी। यानी वो ताइवान पर कब्जा कर लेगा।

नाटो क्या है?

नॉर्थ अटलांटिक ट्रिटी ऑर्गेनाइजेशन(नाटो) की स्थापना 4 अप्रैल 1949 को 12 संस्थापक सदस्यों द्वारा अमेरिका के वॉशिंगटन में किया गया था। यह एक अंतर- सरकारी सैन्य संगठन है। इसका मुख्यालय बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स में अवस्थित है। वर्तमान में इसके सदस्य देशों की संख्या 30 है। इसकी स्थापना का मुख्य   उद्देश्य पश्चिम यूरोप में सोवियत संघ की साम्यवादी विचारधारा को रोकना था। इसमें फ्रांस, बेल्जियम,लक्जमर्ग, ब्रिटेन, नीदरलैंड, कनाडा, डेनमार्क, आइसलैण्ड, इटली,नार्वे, पुर्तगाल, अमेरिका, पूर्व यूनान, टर्की, पश्चिम जर्मनी और स्पेन शामिल हैं।

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