मां की ममता पर भारी जर्मनी का कागज: क्यों कब्जे में है 17 महीने की मासूम, 10 माह से मां-बाप ने देखा तक नहीं

जर्मनी में रहने वाले भारतीय कपल के दर्द को कोई नहीं समझ पा रहा है। भारतीय दूतावास से आश्वासन तो मिला लेकिन परिजन अभी भी अपनी बेटी से दूर हैं। वहीं अब कोर्ट में अपील करके बेटी को वापस पाने की कार्रवाई चल रही है।

Manoj Kumar | Published : Jul 21, 2022 4:30 AM IST / Updated: Jul 21 2022, 10:10 AM IST

नई दिल्ली. ऐसा कम ही सुनने को मिलता है कि सिर्फ एक कागज की वजह से मासूम बेटी को उसके ही मां-बाप से दूर कर दिया जाए। लेकिन जर्मनी में भारतीय दंपति के साथ ऐसा ही हो रहा है। उनकी 17 महीने की बेटी 10 महीने से जर्मनी की प्रोटेक्शन अथॉरिटी के कब्जे में है। माता-पिता से 'फिट टू बी पैरेंट्स' का सर्टिफिकेट मांगा जा रहा है, जिसके लिए भारतीय दंपति कार्यालय के चक्कर लगा रहे हैं। आखिर क्या है पूरा मामला और कैसा है जर्मनी का यह कानून जो पैरेंट्स को भी बच्चों से दूर कर देता है? पढ़ें यह रिपोर्ट...

क्या है पूरा मामला
मूलरूप से गुजरात के रहने वाले भावेश जर्मनी में 2018 से सॉफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर काम कर रहे हैं। उनकी पत्नी धारा साथ ही रहती हैं। 2021 में उनकी बेटी का जन्म हुआ। 10 महीने पहले बेटी नाना-नानी मिलने पहुंचे। उसी दौरान मासूम बच्ची के प्राइवेट पार्ट से खून निकलने पर परिजन डॉक्टर के पास ले गए। डॉक्टरों ने इसे सामान्य बताया लेकिन ब्लीडिंग अगले दिन भी नहीं रूकी। परिजन फिर डॉक्टर के पास पहुंचे। इस बार हास्पिटल ने चाइल्ड प्रोटेक्शन टीम को जानकारी दे दी। अधिकारियों ने इसे चाइल्ड एब्यूज का मामला माना और बच्ची को अथॉरिटी के हवाले कर दिया। हालांकि जांच में भी किसी तरह के उत्पीड़न की बात साबित नहीं हुई है।

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सर्टिफिकेट बना मां-बाप का दुश्मन
जांच में सेक्सुअल एब्यूज साबित नहीं होने के बाद भी बच्ची को भारतीय दंपति को नहीं सौंपा गया। उनसे यह साबित करने के लिए कहा गया कि वे बच्चे को पालने पोषने के काबिल हैं। इसके लिए अथॉरिटी से फिट टू बी पैरेंट्स का सर्टिफिकेट लाने के लिए कहा गया है। भारतीय दंपति की परेशानियां यहीं से बढ़ गई हैं। वे लीगल अथॉारिटी के दो सेशन कर चुके हैं लेकिन उन्हें सर्टिफिकेट नहीं मिल रहा है। यही वजह है कि 17 महीने की मासूम बच्ची पिछले 10 महीने से जर्मन बाल संरक्षण प्राधिरकरण की देखरेख में है।

दूतावास से आश्वासन, कानूनी लड़ाई
यह भारतीय परिवार अपनी बच्ची को वापस पाने के लिए भारतीय दूतावास के भी आग्रह कर चुका लेकिन जर्मन कानूनों के तहत अभी मदद नहीं मिली है। दूतावास आश्वासन दे रहा है लेकिन मां-बाप के दर्द को मानवीय आधार पर नहीं आंका जा रहा है। वहीं बेटी की मां धारा और पिता भावेश ने सिविल कोर्ट में केस भी दर्ज कराया है। 

जर्मनी में चाइल्ड एब्यूज के बढ़ते मामले
जर्मनी का ऑफिसियल डेटा बताता है कि जर्मनी में पिछले साल 15,500 से अधिक बच्चे यौन शोषण का शिकार हुए। 2020 से यह करीब 6.3 प्रतिशत ज्यादा है। वहीं बाल संरक्षण से जुड़ी संस्थाओं का कहना है कि जर्मनी में बाल शोषण महामारी के अनुपात में पहुंच गया है। 2019 में जर्मनी में बाल अपराध के आंकड़े 15,000 पहुंच गए। चाइल्ड पोर्नोग्राफी के 12,000 से अधिक मामलों की जांच हुई। यह 2018 से लगभग 10% की वृद्धि है। यही कारण है जर्मनी में चाइल्ड एब्यूज को लेकर अथॉरिटी सख्त नियम लागू करती है।

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