2 टन RDX से इस पूर्व PM की हुई थी हत्या, चीथड़ों में मिली थीं लाशें; 15 साल बाद फिर चर्चा

2005 में हरीरी के काफिले पर हमला हुआ था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ये संवेदनशील मामला था। गृहयुद्ध के बाद बेरूत के इतिहास में ये एक ऐसा भीषण हमला था जिसमें 22 निर्दोष लोग बेवजह मारे गए और दर्जनों घायल हुए थे।

Asianet News Hindi | Published : Aug 18, 2020 3:19 PM IST / Updated: Aug 18 2020, 09:00 PM IST

नई दिल्ली। पूर्व लेबनानी प्रधानमंत्री रफीक हरीरी समेत 22 निर्दोष लोगों की मौत के मामले में स्पेशल लेबनानी ट्रिब्यूनल ने 2600 पेज का फैसला सुना दिया है। चार आरोपियों में तीन को साक्ष्य नहीं होने की वजह से बरी कर दिया गया जबकि एक अभियुक्त को दोषी पाया है। दोषी हिजबुल्ला के लेबनानी ग्रुप का सदस्य था। ट्रिब्यूनल ने माना कि हत्याकांड के पीछे की वजहें राजनीतिक थीं। हालांकि ट्रिब्यूनल को हत्याकांड के पीछे सीरिया की सरकार या हिजबुल्ला लीडरशिप के शामिल होने का सबूत नहीं मिला। उधर, लेबनान के पूर्व प्रधानमंत्री साद हरीरी ने कहा, "हम ट्रिब्यूनल के फैसले को स्वीकार करते हैं। हम चाहते हैं कि दोषियों को सजा देकर न्याय को लागू किया जाए।" 

क्या हुआ था 15 साल पहले? 
14 फरवरी 2005 में हरीरी के काफिले पर हमला हुआ था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ये संवेदनशील मामला था। गृहयुद्ध के बाद बेरूत के इतिहास में ये एक ऐसा भीषण हमला था जिसमें 22 निर्दोष लोग बेवजह मारे गए और दर्जनों घायल हुए थे। हमला कितना खौफनाक था इसका अंदाजा सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि घटनास्थल से आधे किलोमीटर के एरिया में इमारतों की खिड़कियां चकनाचूर हो गई थीं। हमले में 2 टन आरडीएक्स का इस्तेमाल किया गया था। 

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चीथड़ों में मिली थीं लाशें 
जहां धमाका हुआ था वहां कई मीटर के रेडियस में सात फीट से ज्यादा गड्ढा हो गया था। हरीरी के काफिले में शामिल कई गाड़ियों के परखच्चे उड़ गए थे। लोगों की लाशें चीथड़े में मिली थी। हालांकि हमले के वक्त हरीरी प्रधानमंत्री नहीं थे मगर उनकी राजनीतिक हैसियत बहयत ज्यादा थी। उन्हें "मिस्टर लेबनान" कहकर बुलाया जाता था। न सिर्फ लेबनान बल्कि पश्चिम के कई नेताओं से हरीरी की करीबी थी। सीरिया और हिजबुल्ला पर हमला करने की आशंका जाहिर की गई थी। तब चार आरोपियों का नाम सामने आया था जिसमें से एक हिजबुल्ला का कुख्यात कमांडर अमीन बदरुद्दीन भी था। हिजबुल्ला ईरान समर्थित शिया आतंकी संगठन है जो बहुत ताकतवर है। 

 

क्यों हिजबुल्ला और सीरिया का नाम आया? 
दरअसल, 1975 से 1990 तक लेबनान गृहयुद्ध का सामना करता रहा। कई सालों तक लेबनान पर सीरिया का कब्जा भी रहा। हरीरी ने सीरिया के खिलाफ लंबा अभियान चलाया था। मगर गृहयुद्ध की समाप्ति के बाद लेबनान में राजनीतिक शांति दिखने लगी थी। हरीरी, सुन्नी मुसलमान थे और लेबनान पर उनकी अच्छी ख़ासी पकड़ थी। माना जा रहा था कि वो चुनावों में जीत दर्ज कर लेबनान की कमान फिर हाथ में ले लेंगे। हालांकि बसर-अल-असद की सीरियाई सरकार हमेशा से आरोपों को खारिज करती आई है। 

इसका एक मतलब यह भी था कि लेबनान पर सीरियाई गुटों और हिजबुल्ला की पकड़ का कमजोर होना। लेबनान में भी हिजबुल्ला का एक समूह सक्रिय है। दरअसल, आतंकी गतिविधियों के लिए हिजबुल्ला गोलाबारूद की तस्करी उसी समुद्री रास्ते से करता था जो लेबनान के पोर्ट से होकर गुजरता था। विरोधी सरकार होने की स्थिति उसके हितों के खिलाफ थी। हरीरी पश्चिम समर्थक भी थे। हरीरी का सुन्नी होना भी शियाओं के राजनीतिक हितों के खिलाफ था। यह बताने की जरूरत नहीं कि अशांत इस्लामिक देशों में शिया और सुन्नी गुटों का झगड़ा राजनीतिक रूप से कितना संवेदनशील है।  


जांच पर पहले से ही उठते रहे हैं सवाल 
इस मामले में लेबनान अथारिटिज की भूमिका को लेकर पहले ही सवाल उठे हैं। विक्टिम्स के परिजनों ने इंटरनेशनल इनवेस्टिगेशन की मांग की थी। घटना के बाद यूनाइटेड नेशन का एक दल जांच करने लेबनान पहुंचा। सीरियाई संलिप्तता को लेकर जांच आगे बढ़ी। चार जनरलों को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया जिन्हें चार साल बाद 2009 में छोड़ा गया। हिजबुल्ला के शामिल होने को लेकर भी जांच की गई। इसी मामले में कानूनी सुनवाई के लिए "स्पेशल ट्रिब्यूनल" का गठन किया था। 

क्या राजनीतिक थी जांच? 
घटना के बाद मामले में पूछताछ के लिए हिरासत में लिए गए एक जनरल एमपी जमील सईद ने अल जजीरा से कहा, "केस में जांच पहले दिन से ही एक गंदा राजनीतिक खेल था। सही जांच और सबूतों को तलाश करने की बजाय शुरुआती जांच से ही यह जाहिर करने की कोशिश की गई कि सीरिया और उसके सहयोगी हरीरी की हत्या में शामिल रहे। और इन्हीं दावों को पुख्ता करने के लिए सबूत ढूंढे जा रह थे।" 

हरीरी समर्थकों का मानना है कि जानबूझकर सुनवाई में देरी की गई। कई समर्थक फैसले से पूरी तरह खुश नहीं हैं। समर्थकों ने कहा, "न्याय में देरी का मतलब, न्याय को खारिज कर देना।" चूंकि मामला राजनीतिक रूप से काफी संवेदनशील है, इसलिए इसके व्यापक असर  की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। अब देखने वाली बात होगी कि बेरूत की हालिया घटना के बाद हरीरी मामले में कोर्ट के फैसले का लेबनान की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा। 

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