बांग्लादेश: क्रिसमस पर 17 ईसाइयों के घर फूंके, पुलिस ने अब तक नहीं लिया एक्शन

Published : Dec 26, 2024, 09:51 AM ISTUpdated : Dec 26, 2024, 10:16 AM IST
Bangladesh Violence

सार

बांग्लादेश के बंदरबन में क्रिसमस से एक दिन पहले ईसाई समुदाय के घरों में आगजनी की घटना हुई। चर्च जाने के दौरान उनके घरों को जला दिया गया, जिससे भारी नुकसान हुआ। 

ढाका। बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। हिंदुओं के बाद अब कट्टरपंथी लोग ईसाइयों को भी निशाना बना रहे हैं। 25 दिसंबर को क्रिसमस से एक दिन पहले कट्टरपंथियों ने बंदरबन जिले के चटगांव पहाड़ी इलाके में घटना को अंजाम दिया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, ईसाई समुदाय के लोग जब क्रिसमस मनाने के लिए पास के चर्च में गए थे, तभी उपद्रवियों ने उनके घरों को फूंक दिया।

प्रेयर के लिए टोंग्याझिरी गांव स्थित चर्च गए थे लोग

घटना के समय प्रभावित गांव न्यू बेटाचरा पारा में कोई शख्स मौजूद नहीं था। इसी का फायदा उठाकर उपद्रवियों ने घरों में आग लगा दी। लामा उपजिला में सराय यूनियन के वार्ड नंबर 8 में स्थित गांव वाले क्रिसमस मनाने के लिए पास के टोंग्याझिरी गांव स्थित चर्च गए थे। ईसाई समुदाय के लोगों का कहना है कि इस घटना में उनका 15 लाख टका से ज्यादा का नुकसान हुआ है। घटना की जानकारी मिलते ही पुलिस ने इलाके का दौरा किया, लेकिन अब तक उपद्रवियों के खिलाफ कोई ठोस एक्शन नहीं लिया गया है। पुलिस का कहना है कि आगजनी के संबंध में कोई ऑफिशियल कम्पलेन नहीं की गई है। शिकायत मिलने पर कार्रवाई की जाएगी।

 

 

डेढ़ महीने से दी जा रही थी गांव खाली करने की धमकी

ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, ईसाई समुदाय के लोग इस इलाके में कई पीढ़ियों से रह रहे थे। 17 नवंबर को उपद्रवियों ने इन सभी को गांव खाली करने की धमकी दी थी। उनका कहना था कि अगर यहां रहना है तो भारी कीमत चुकानी होगी। इसके बाद समुदाय के एक शख्स ने 15 आरोपियों के खिलाफ लामा पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। हालांकि, पुलिस ने इसे गंभीरता से न लेते हुए उपद्रवियों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया।

खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर

वहीं, कुछ लोगों का ये भी कहना है कि बांग्लादेश सरकार ने ये जमीन एक पुलिस अधिकारी और पूर्व आईजीपी बेनजीर अहमद को पट्टे पर दे दी है। पहले यहां एसपी गार्डन हुआ करता था। 5 अगस्त के बाद बेनजीर अहमद और उनके परिवार के लोग ये इलाका छोड़कर चले गए। इसके बाद यहां त्रिपुरा समुदाय के 19 परिवार आकर रहने लगे थे। हालांकि, अब घर जलने के बाद पीड़ित परिवारों के सिर पर छत नहीं बची है और वे खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर हैं।

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