
नई दिल्ली/मास्को। भारत और रूस के बीच रक्षा साझेदारी पहले से ही बेहद मजबूत मानी जाती है, लेकिन पुतिन के भारत दौरे से ठीक पहले जो बड़ा कदम सामने आया है, उसने इस रिश्ते को एक नई दिशा दे दी है। रूस की पार्लियामेंट स्टेट ड्यूमा ने भारत के साथ हुए बेहद अहम RELOS डिफेंस एग्रीमेंट (RELOS Defence Agreement) को मंजूरी दे दी है। यह वही समझौता है, जो दोनों देशों की सेनाओं को एक-दूसरे की जमीन, एयरस्पेस और पोर्ट का इस्तेमाल करने की सुविधा देगा। इस एग्रीमेंट को लेकर दोनों देशों में उत्सुकता इसलिए भी है क्योंकि यह पहली बार है जब भारत और रूस अपने मिलिट्री लॉजिस्टिक सपोर्ट को इस स्तर पर जोड़ रहे हैं। सवाल यही है—क्या यह समझौता सिर्फ लॉजिस्टिक्स तक सीमित है या इसके पीछे कोई बड़ी स्ट्रेटेजिक प्लानिंग छुपी है?
RELOS यानी Reciprocal Exchange of Logistic Support Agreement। सरल भाषा में कहें तो यह समझौता दोनों देशों की सेनाओं को एक-दूसरे की सुविधाओं, ईंधन, सप्लाई, रिपेयर और पोर्ट-एयरबेस सपोर्ट का सहज एक्सेस देगा।
इसका मतलब है कि:
विशेषज्ञ मान रहे हैं कि इस समझौते से हिंद महासागर और इंडो-पैसिफिक में भारत की भूमिका और मजबूत होगी। वहीं रूस को भी एशिया में अपने मिलिट्री मूवमेंट के लिए एक मजबूत पार्टनर मिलेगा।
स्टेट ड्यूमा के स्पीकर व्याचेस्लाव वोलोडिन ने कहा कि भारत-रूस रिश्ते बहुत गहरे और रणनीतिक हैं। पुतिन के दौरे से दो दिन पहले यह मंजूरी मिलना अपने-आप में बताता है कि रूस भारत को एक प्रमुख पार्टनर के रूप में देखता है। यह मंजूरी ठीक उसी समय आई है जब दुनिया दो बड़े धड़ों में बंट चुकी है-यूक्रेन युद्ध जारी है, पश्चिम और रूस के रिश्ते बेहद खराब हैं, और एशिया में सुरक्षा परिदृश्य लगातार बदल रहा है। ऐसे माहौल में भारत और रूस का लॉजिस्टिक एग्रीमेंट एक महत्वपूर्ण संकेत देता है।
RELOS सिर्फ ईंधन भरने और पोर्ट इस्तेमाल तक सीमित नहीं है। इसके अंदर शामिल हैं:
इन प्रावधानों से लगता है कि भारत और रूस भविष्य की सुरक्षा चुनौतियों पर एक साथ काम करने की तैयारी में हैं।
इस एग्रीमेंट के बाद दोनों देशों के बीच मिलिट्री कोऑपरेशन पहले से ज्यादा आसान, तेज और प्रभावी हो जाएगा। यह समझौता न केवल रणनीतिक विश्वास बढ़ाता है, बल्कि यह संकेत भी देता है कि आने वाले समय में भारत-रूस रक्षा साझेदारी और मजबूत होने वाली है।
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