श्रीलंका के राजनैतिक और आर्थिक हालात काफी खराब हो गए हैं। देश के सबसे उंचे पद पर बैठे व्यक्ति ने देश छोड़ने में ही भलाई समझी। आम जनता ने राष्ट्रपति भवन पर कब्जा जमा लिया। प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के आवास पर भी आगजनी की गई।
कोलंबो. श्रीलंका की लड़खड़ाई अर्थव्यवस्था और लचर प्रशासन ने द्वीपीय राष्ट्र को संवैधानिक संकट में धकेल दिया है। आम जनता के भीषण विरोध प्रदर्शन के बीच राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने देश छोड़ दिया है। देश के भीतर नई सरकार बनाने की पहल तो की जा रही है लेकिन इस बात कोई गारंटी लेने वाला नहीं है कि सरकार बदलने से संकट भी खत्म हो जाएगा। श्रीलंका के प्रमुख राजनेता और राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे देश छोड़कर मालदीव चले गए हैं। प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने भी इस्तीफा देने की घोषणा की है। आखिरकार श्रीलंका संकट का क्या होगा आगे का रास्ता, कैसे बदलेंगे हालात, यहां जानें...
मौजूदा हालात में क्या होगा संवैधानिक रोडमैप
कौन-कौन हैं प्रमुख लोग
प्रधान मंत्री रानिल विक्रमसिंघे- विक्रमसिंघे को राष्ट्रपति राजपक्षे द्वारा कार्यवाहक प्रधानमंत्री के तौर नियुक्त किया था, जो अब खुद मालदीव भाग गए हैं। संसद के अध्यक्ष अभयवर्धने ने घोषणा की है कि राष्ट्रपति राजपक्षे ने प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे को कार्यों के लिए नियुक्त किया है।
अध्यक्ष महिंदा यापा अभयवर्धने- श्रीलंका के संविधान के तहत यदि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों इस्तीफा देते हैं तो संसद का अध्यक्ष अधिकतम 30 दिनों के लिए कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेंगे। संसद अपने सदस्यों में से 30 दिनों के भीतर एक नए अध्यक्ष का चुनाव करेगी। जिनका कार्यकाल शेष 2 वर्ष का होगा।
विपक्षी नेता साजिथ प्रेमदासा- श्रीलंका की मुख्य विपक्षी पार्टी समागी जन बालवेगया (एसजेबी) के नेता साजिथ प्रेमदासा ने कहा है कि उनकी पार्टी दिवालिया हो चुके देश में स्थिरता लाने के लिए अगली सरकार का नेतृत्व करने को तैयार है। उनका कहना है कि देश राजनीतिक और आर्थिक संकट से जूझ रहा है। संसद में इस कदम को विश्वासघाती कार्य के तौर पर देखा जाएगा।
राजपक्षे परिवार का क्या होगा
राजपक्षे परिवार के चार सदस्यों ने सत्ता के सर्वोच्च पदों पर शासन किया। जबकि परिवार के दो भतीजे सरकार में दावेदारी पेश करते रहे। गोटाबाया राजपक्षे लोकप्रिय समर्थन के राष्ट्रपति बने रहे और पूरी संवैधानिक क्षमता के साथ कार्य करते रहे। भले ही वे अपन परिवार के सबसे ताकतवर सदस्य रहे लेकिन पार्टी श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) में कभी उनकी पकड़ मजबूत नहीं थी। कोलंबो में रहने वाले राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि गोटाबाया कभी राजनेता नहीं थे। वे अपने भाई महिंदा राजपक्षे के करिश्मे के दम पर राजनीति में बने रहे।
किसी की वापसी की संभावना नहीं
राजपक्षे परिवार की राजनैतिक स्थिति काफी कमजोर हो गई थी। यहां तक कि राष्ट्रपति का उनके कर्मचारी तक उनकी बात नहीं सुनते थे। इसलिए राष्ट्रपति पद पर उनकी वापसी का कोई सवाल ही नहीं उठता। महिंदा राजपक्षे भी उम्र के साथ काफी कमजोर हो गए हैं और फिर से उनमें राजनैतिक करिश्मा करने की गुंजाइश नहीं बची है। लोगों के हिंसक विरोध और दबाव के बाद उन्हें आवास भी छोड़ना पड़ा। 76 वर्षीय राजपक्षे को अब श्रीलंका की राजनीति में असर होगा, यह संभव दिखाई नहीं दे रहा है। परेरा ने कहा कि छोटे भाई और पूर्व वित्त मंत्री बेसिल राजपक्षे के लिए भी कोई वापसी की कोई संभावना नहीं है।
श्रीलंका के आर्थिक संकट के हालात
22 मिलियन लोगों का देश श्रीलंका अभूतपूर्व आर्थिक उथल-पुथल की चपेट में है। बीते सात दशकों में यह सबसे खराब है स्थिति है। यही कारण है कि देश के लाखों लोग भोजन, दवा, ईंधन और अन्य आवश्यक चीजें खरीदने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। स्कूलों को बंद कर दिया गया है। ईंधन को आवश्यक सेवाओं तक ही सीमित कर दिया गया है। ईंधन की कमी के कारण मरीज हास्पिटल नहीं जा पा रहे हैं। ट्रेन के पहिए ठप हैं, फ्रीक्वेंसी कम होने की वजह से लोगों को आवागमन में भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। हालात यह है कि शहरों में लोग घंटों पेट्रोल की लाइन में लगते हैं और पुलिस तथा सेना के साथ भी भिड़ने में परहेज नहीं करते। यही कारण है कि कई बार हिंसक झड़पें हुई हैं।
श्रीलंका के विदेशी कर्ज की स्थिति
श्रीलंका में तेजी से विदेशी मुद्रा का संकट खड़ा हो गया है। इसके परिणामस्वरूप विदेशी लोन सीमा से ज्यादा हो गया है। श्रीलंका का कुल विदेशी लोन करीब 51 बिलियन अमेरिकी डालर है। इसमें से 2026 तक 25 बिलियन डालर का भुगतान करना है जबकि इसी वर्ष करीब 7 बिलियन डालर का भुगतान संभव नहीं हो पाया है।
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