
Tiananman Square Genocide: चीन में इन दिनों कई बैंकों से पैसे निकालने पर रोक लगा दी गई है। बैंक ऑफ चाइना का कहना है कि यहां जमा पैसा इन्वेस्टमेंट है, जिसे किसी भी वक्त नहीं निकाला जा सकता है। सरकार के इस फैसले के खिलाफ चीन में लोग सड़कों पर उतर आए हैं और जमकर विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। ऐसे में लोगों से निपटने के लिए चीन सरकार ने बड़ी संख्या में सेना के टैंक सड़कों पर उतार दिए हैं। चीन में बने ताजा हालातों ने एक बार फिर दुनिया को थियानमेन चौक की यादें ताजा कर दी हैं। आखिर कहां है ऐतिहासिक थियानमैन स्क्वेयर और क्यों इसे इस वक्त याद किया जा रहा है, जानते हैं।
क्यों याद किया जाता है थियानमेन चौक?
33 साल पहले जून, 1989 में चीन की कम्युनिस्ट सरकार का जमकर विरोध हुआ। लाखों की संख्या में लोग चीन में लोकतंत्र की बहाली चाहते थे और इसके लिए बीजिंग के मशहूर थियानमैन चौक पर विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे। ऐसे में चीन की सरकार ने सड़कों पर सेना (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) के टैंक उतार दिए और 10 हजार स्टूडेंट्स को टैंक से कुचल दिया गया था।
क्यों हो रहा था विरोध प्रदर्शन :
बीजिंग के थियानमेन चौक पर विरोध प्रदर्शन कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व महासचिव और सुधारवादी नेता हू याओबांग की मौत के बाद शुरू हुए थे। हू याओबांग को चीन की तत्कालीन सरकार ने राजनीतिक और आर्थिक नीतियों का विरोध करने की वजह से हटा दिया था। इसके बाद 15 अप्रैल, 1989 को उनकी हत्या कर दी गई थी, जिसके विरोध में लाखों लोग थियानमेन चौक पहुंच गए थे।
लोगों पर चढ़ा दिए टैंक, बरसाईं गोलियां :
करीब डेढ़ महीने तक चले इस विरोध-प्रदर्शन को दबाने के लिए चीन की सरकार ने 3-4 जून को निहत्थे नागरिकों को टैंको से कुचलना शुरू कर दिया। कई लोगों पर सरेआम गोलियां बरसाई गईं। इस कार्रवाई में 10 हजार से ज्यादा लोग मारे गए। हालांकि, इस नरसंहार को चीन की सरकार आज भी सही बताती है।
चीन में इस घटना का जिक्र भी अपराध :
4 जून 1989 को थियानमेन चौक पर जब लाखों स्टूडेंट्स शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे थे, तभी रात को हथियारों से लदे चीनी सैनिक टैंक और हथियार के साथ यहां पहुंचे। इसके बाद चारों तरफ से पूरे चौराहे को घेर लिया गया। बाद में लोगों के उपर टैंक चढ़ाने के साथ ही ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई गईं। प्रदर्शनकारियों को जरा भी अंदाजा नहीं था कि उन पर इस तरह से गोलियां बरसाई जाएंगी। इस नरसंहार में 10 हजार लोग मारे गए, लेकिन चीनी सरकार सिर्फ 200 लोगों के मरने का दावा करती है। चीन सरकार ने इस नरसंहार को दबाने की हरसंभव कोशिश की। यहां तक कि चीन में इंटरनेट और किताबों में भी इस पर रोक है।
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