हाल ही में इजरायल और ताइवान में भारतीय कामगारों की मांग बढ़ी है। जिसके बाद सवाल उठ रहे कि आखिर भारतीयों की श्रम क्षेत्र में मांग क्यों बढ़ रही है। इसका क्या कारण हो सकता है।
इजराइल में युद्ध के हालात के बीच अचानक निर्माण क्षेत्र में काम करने वालों की कमी हो गई। जिसके बाद वहां भारतीय वर्कर्स को बुलाने की मांग हुई। ताइवान भारतीय कामगारों को लाना चाहता है
ताइवान में फैक्ट्री, खेतों और अस्पतालों में काम करने के लिए करीब 1 लाख भारतीयों को नौकरी पर रखना चाहता है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत से उसकी बातचीत भी चल रही है।
कहा जा रहा है कि चीन के खतरे से निपटने ताइवान अपनी वर्कफोर्स की कमी को पूरा करने भारत के साथ एम्प्लॉयमेंट मोबिलिटी समझौता कर सकता है। बहुत जल्द इस पर बात भी बन सकती है।
ताइवान भारतीयों को वहां के स्थानीय की तरह ही सैलरी, बीमा और अन्य सुविधाएं देने का प्रस्ताव कर रहा है। भारतीय को स्वास्थ्य संबंधी प्रमाणपत्र जारी करने की प्रक्रिया पर काम कर रहा है।
इजराइल-ताइवान ही नहीं जापान, फ्रांस, यूके, नीदरलैंड, ग्रीस, डेनमार्क और स्विट्जरलैंड में भारतीय कामगारों की भारी मांग है। इसको लेकर कई देशों की भारत सरकार से बातचीत चल रही है।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, भारतीय श्रमिकों की मांग के पीछे स्थानीय या अंतरराष्ट्रीय राजनीति या भारतीय कामगारों के काम करने की कुशलता है, जिससे भारतीय इसके लिए पहली पसंद बन रहे हैं।
राजनीतिक दृष्टि से भारतीय चीन या किसी पड़ोसी अरब देशों के कामगारों की तुलना में ज्यादा अच्छे माने जाते हैं। ताइवान चीन से प्रतिद्वंदता के चलते भारतीयों को प्रॉयरिटी दे रहा।
दुनिया में श्रम शक्ति में भारत-चीन कड़े प्रतिद्वदी हमेशा से ही रहे हैं। कुछ समय पहले तक चीनी श्रमिक सबसे ज्यादा और कठिन मेहनत करने वाले माने जाते थे लेकिन अब भारतीयों आगे निकल गए।
चीनी श्रम शक्ति को आज भी भारतीय श्रम शक्ति से बेहतर माना जाता है लेकिन अंतरारष्ट्रीय स्तर पर पश्चिमी देश चीन को प्रॉयरिटी देना बंद कर रहे।ऐसे में एशिया में भारतीयों की मांग बढ़ गई।