सुप्रीम कोर्ट ने 1 अक्टूबर तक के लिए बुलडोजर एक्शन पर पूरी तरह रोक लगा दी है। जानते हैं आखिर कितनी तरह के होते हैं बुलडोजर और कैसे टास्क और माहौल के हिसाब से इनका काम अलग-अलग है।
ये एक भारी-भरकम मशीन है, जो कि ट्रैक्स पर चलती है। ये असमतल जमीन पर भी बढ़िया ट्रैक्शन देती है। आमतौर पर इनका इस्तेमाल कंस्ट्रक्शन और माइनिंग में किया जाता है।
पहियों पर चलने वाले ये डोजर ठोस सतहों पर अधिक स्पीड और गतिशीलता के साथ काम करते हैं। इनका ज्यादातर इस्तेमाल शहरों में कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट़स में होता है।
मिनी डोजर आकार में छोटे और ज्यादा हल्के होते हैं, इसलिए इनका इस्तेमाल रेसिडेंशियल प्रोजेक्ट के अलावा नगर निगम और बिजली विभाग में भी होता है।
एंगल डोजर का इस्तेमाल ग्रेडिंग ऑपरेशन में किया जाता है। इसके जरिये कीमती मटेरियल को सही तरीके से लेफ्ट या राइट एंगल में घुमाकर पहुंचाया जा सकता है।
पुश डोजर को बड़ी मात्रा में मटेरियल को लंबी दूरी तक ले जाने के हिसाब े बनाया गया है। इनका उपयोग अक्सर भूमि सुधार प्रोजेक्ट्स में किया जाता है।
इस बुलडोजर को कोयले से जुड़े कामों को हैंडल करने में होता है। इनमें लूज मटेरियल को बेहतर तरीके से रखने के लिए बड़े घुमावदार ब्लेड लगे होते हैं।
भारत में बुलडोज़र की कीमत उसके इस्तेमाल और डिजाइन के हिसाब से अलग-अलग हैं। मिनी डोजर जहां 10 से 30 लाख में आत है, तो वहीं क्रॉलर डोजर 30 लाख से 1 करोड़ या उससे ऊपर तक आते हैं।
इसी तरह व्हील डोजर 50 लाख से 1 करोड़ के बीच आते हैं। वहीं, बड़े डोजर का हाई-एंड मॉडल 2 करोड़ से भी ज्यादा में आता है। इनकी कीमतों में थोड़ा-बहुत अंतर हो सकता है।