राजस्थान का 6 वर्षीय अमर लाल, बंजारा खानाबदोश जनजाति के अपने परिवार के साथ नियमित जीवन जीता था। एक खदान से दूसरे खदान में काम करने जाता था।
1980 में अंतरराष्ट्रीय बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी बाल दासता, शोषण के खिलाफ अग्रणी व्यक्ति के रूप में उभरे। जिन्होंने कई बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्ति मिली।
2001 में अपने गांव में एक रैली के दौरान सत्यार्थी की मुलाकाल ऐसे ही एक बच्चे अमर लाल से हुई। तब अमर लाल भारी पत्थरों को ले जा रहा था।
सत्यार्थी के साथ एक संक्षिप्त बातचीत के बाद लाल के जीवन ने एक नई दिशा ले ली। उसके माता-पिता को आश्वस्त किया कि उनका बच्चा एक उज्जवल भविष्य का हकदार है।
सत्यार्थी ने एक देवदूत की तरह, अमर लाल के माता-पिता को आश्वासन दिया कि खदान से परे एक दुनिया मौजूद है, जहां बच्चे खेल सकते हैं, हंस सकते हैं और सीख सकते हैं।
सत्यार्थी पर भरोसा करते हुए लाल अपने दो बड़े भाइयों के साथ कुछ ही दिनों में जयपुर में सत्यार्थी के बालाश्रम पहुंच गया। वहां इनफॉर्मल एजुकेशन और ट्रेनिंग प्राप्त की।
आश्रम में बिताए गए वर्षों में परिवार से दूर रहते हुए लाल को ऐसी शिक्षा मिली जो वर्तमान वकालत की नींव बनी। दुनिया की क्रूरताओं को पहचानते हुए लाल ने चेंजमेकर्स के महत्व को भी समझा।
जब 12वीं कक्षा के बाद करियर चुनने का समय आया, तो लाल को कोई भ्रम नहीं हुआ। उन्हें स्पष्ट रूप से बाल अधिकारों के लिए खुद को समर्पित करना था।
अमर लाल जो अब एक वकील हैं, सत्यार्थी के साथ मामलों और बचाव कार्यों में सहयोग करते हैं, जिससे अनगिनत बच्चों को आशा मिलती है।