भारत में कई बड़े ठग हुए हैं लेकिन एक ठग ऐसा भी है जिसकी पहचान देश में ही नहीं, विदेशों में भी फैली। उसका नाम है मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव, जिन्हें लोग नटवरलाल के नाम से जानते हैं।
नटवरलाल ने ताजमहल को तीन बार, लाल किले को दो बार और राष्ट्रपति भवन को एक बार बेचा था। वे एक ऐसे शातिर ठग थे जिन्होंने वकालत की पढ़ाई के बाद ठगी को पेशा बना लिया।
नटवरलाल उर्फ मिथिलेश का जन्म बिहार के सीवान में हुआ। पढ़ाई में खास रुचि नहीं थी, फुटबॉल-शतरंज खेलना पसंद था। जिससे वे मैट्रिक की परीक्षा में फेल हो गए और पिता ने उन्हें सजा दी।
एक दिन उन्होंने अपने पड़ोसी का बैंक से पैसे निकालने के लिए फर्जी हस्ताक्षर किए। जब उनके पिता को यह पता चला तो उन्होंने मिथिलेश को पीटा, जिसके बाद वे घर से भागकर कोलकाता चले गए।
कोलकाता में उन्होंने कॉमर्स डिग्री हासिल की।एक व्यक्ति केशवराम ने उन्हें बेटे को पढ़ाने के लिए रखा। जब मिथिलेश ने अपनी ग्रेजुएशन की फीस के लिए पैसे मांगे तो केशवराम ने मना कर दिया।
केशवराम से नाराज मिथिलेश ने कपास खरीदने के बहाने से उससे 4.5 लाख रुपये ठग लिए। 1970-80 के दशक में नटवरलाल ने कई लोगों को ठगा। ऐसी ठगी की घटनाएं कीं कि वे सबसे बड़े ठग बने।
नटवरलाल ने ताजमहल को तीन बार, लाल किले को दो बार और एक बार संसद भवन को बेच डाला। हैरानी की बात यह थी कि जब उन्होंने संसद भवन बेचा, उस वक्त सभी सांसद वहां मौजूद थे।
इस शातिर ठग ने सिर्फ इमारतें ही नहीं बेचीं, उन्होंने देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के फर्जी हस्ताक्षर भी किए। मशहूर उद्योगपतियों जैसे टाटा, बिड़ला को भी जाल में फंसाया।
नटवरलाल पर 8 राज्यों में 100 से ज्यादा केस दर्ज थे। वे हमेशा पकड़े नहीं जाते थे फिर भी उन्हें 9 बार गिरफ्तार किया गया लेकिन हर बार वे फरार हो गए। कोर्ट ने 113 साल की सजा सुनाई थी।
आखिरी बार जब उन्हें पकड़ा गया उनकी उम्र 84 साल थी। लेकिन 24 जून 1996 को जब इलाज के लिए AIIMS ले जाया जा रहा था, तो वे पुलिस को चकमा देकर भाग निकले। जिसके बाद उनका कोई पता नहीं चला।