रजिया ने संस्कृत से एमए किया है और अब पीएचडी कर रही हैं। रजिया के अनुसार, उनके अब्बा मोहम्मद सुलेमान देवबंद विवि में प्रोफेसर थे। उन्होंने कुरान शरीफ का हिंदी में अनुवाद किया था।
पिता चाहते थे कि कुरान शरीफ का संस्कृत में अनुवाद करूं। संस्कृत पढ़ता देख रजिया से लोग यह कहते थे कि संस्कृत पढ़कर पंडिताई करेगी, लेकिन वह टीचर बनना चाहती थीं और बन कर दिखाया।
एमए संस्कृत से करने के बाद कुरान शरीफ का संस्कृत में अनुवाद किया। रजिया वर्तमान में यूपी के सहारनपुर के प्राथमिक विद्यालय सहाबुद्दीनपुर में प्रधानाध्यापिका हैं।
उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष शादाब शम्स के मुताबिक, रजिया को मदरसों में शिक्षा की बेहतरी के लिए बनाई जाने वाली शिक्षा समिति में सदस्य बनाया जाएगा।
एक अन्य हैं शालिमा तबस्सुम इन्होंने भी 1992 में संस्कृत से एमए किया फिर 1998 में संस्कृत से पीएचडी की। कहती हैं संस्कृत एक भाषा है, इसे किसी अन्य चीज से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।
शालिमा मूल रूप से मंगलौर रुड़की की रहने वाली हैं।उनके अनुसार परिजनों ने शुरू से ही उन्हें विषय चयन की छूट दी हुई थी। उनकी संस्कृत के प्रति शुरू से रुचि थी, यही वजह रही कि इसे चुना।
उत्तराखंड वक्फ बोर्ड में शालिमा को शिक्षा समिति का सदस्य बनाया जाएगा। यह कमेटी जो सुझाव देगी, उसे मदरसों में शिक्षा की बेहतरी के लिए लागू किया जाएगा।