अक्षय कुमार स्टारर 'सरफिरा' की रफ़्तार बेहद धीमी है। फिल्म कई जगह बोझिल लगने लगती है। इसकी लंबाई 2 घंटे 33 मिनट की है, जबकि आसानी से डेढ़ से दो घंटे में ही इसे समेटा जा सकता था।
वैसे तो 'सरफिरा' हिंदी फिल्म है। लेकिन यह काफी हद तक मराठी जैसी लगती है। राधिका मदान ने अपने लगभग सभी संवाद मराठी में बोले हैं। अक्षय भी मराठी का हैवी डोज़ देते दिखे हैं।
फिल्म में एक कहानी वीर म्हात्रे (अक्षय कुमार) की है तो दूसरी रानी (राधिका मदान) की। दोनों को साथ दिखाने के चक्कर में फिल्म कई जगह उलझी हुई दिखाई पड़ती है और कन्फ्यूज करती है।
'सरफिरा' का म्यूजिक दमदार नहीं है। फिल्म में ऐसा कोई गाना नहीं है, जो थिएटर्स से निकलते दर्शकों को गुनगुनाते सुना जा सके। बैकग्राउंड म्यूजिक पर भी काम किया जा सकता था।
अक्षय कुमार को सरफिरा दिखाने के लिए मेकर्स ने एक सीन में उन्हें अपने दोस्त की मैयत में नाचते भी दिखा दिया है। लेकिन क्या एक सरफिरा आदमी वाकई ऐसा होता है?
'सरफिरा' का क्लाइमैक्स जल्दबाजी में तैयार किया हुआ लगता है। मेकर्स चाहते तो इसे और भी रोचक और सस्पेंस और थ्रिल से भरपूर बना सकते थे।
अगर अक्षय कुमार, परेश रावल, राधिका मदान और सीमा विश्वास को छोड़ दिया जाए तो सरफिरा की बाकी स्टारकास्ट ऐसी है, जिससे आप दर्शक कनेक्ट ही नहीं हो पाएंगे।