फिल्ममेकर श्याम बेनेगल का निधन हो गया है। 90 की उम्र में उन्होंने 23 दिसंबर 2024 को अंतिम सांस ली। उन्होंने अपने करियर में 20 से ज्यादा फीचर फ़िल्में बनाई और 18 नेशनल अवॉर्ड जीते।
श्याम बेनेगल की पहली फिल्म 'अंकुर'(1974) को सेकंड बेस्ट फीचर फिल्म का नेशनल अवॉर्ड मिला। इसके बाद 1975 में उनकी 'निशांत' और 1976 की ‘मंथन’ बेस्ट फीचर फिल्म चुनी गईं।
1977 की फिल्म 'भूमिका' के लिए बेस्ट स्क्रीनप्ले, 1979 में 'जुनून', 1982 की 'आरोहन' को बेस्ट फीचर फिल्म और 1985 की 'त्रिकाल' के लिए बेस्ट डायरेक्शन का नेशनल अवॉर्ड बेनेगल को मिला।
‘सूरज का सातवां घोड़ा’(1993), 'मम्मो'(1994), 1996 में 'सरदारी बेगम' (उर्दू), 'द मेकिंग ऑफ़ महात्मा' (इंग्लिश),1999 में 'समर' को बेस्ट फीचर फिल्म का नेशनल अवॉर्ड श्याम बेनेगल ने जीता।
साल 2000 में 'हरी भरी' के लिए बेस्ट फिल्म ऑन फैमिली वेलफेयर, 2001 में 'जुबैदा' के लिए बेस्ट फीचर फिल्म का नेशनल अवॉर्ड श्याम बेनेगल ने अपने नाम किया।
‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस’(2005) ने नर्गिस दत्त अवॉर्ड फॉर बेस्ट फीचर फिल्म ऑन नेशनल इंटीग्रेशन और 'वेल डन अब्बा'(2010) ने बेस्ट फीचर फिल्म ऑन अदर सोशल इश्यूज का नेशनल अवॉर्ड जीता।
श्याम बेनेगल को डॉक्युमेंट्री 'सत्यजीत रे, फिल्ममेकर' (1982) के लिए बेस्ट बायोग्राफिकल फिल्म और 'नेहरू' के लिए बेस्ट होस्तोरिकल रिकंस्ट्रक्शन का नेशनल अवॉर्ड मिला।
2005 में फिल्म इंडस्ट्री में महत्वपूर्ण योगदान के लिए श्याम बेनेगल को भारतीय सिनेमा का सबसे बड़ा सम्मान दादा साहब फाल्के अवॉर्ड भी दिया गया था।