गोविंदा एक बार फिर राजनीति में आ गए हैं। वे शिवसेना के शिंदे गुट में शामिल हो गए हैं। वे मुंबई के उत्तर-पश्चिम लोकसभा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं।
एक वक्त था, जब गोविंदा कांग्रेस नेता हुआ करते थे।2004 में वे कांग्रेस में शामिल हुए थे और उन्होंने मुंबई उत्तर से लोकसभा चुनाव लड़ भाजपा के पांच बार के सांसद राम नायक को हराया था।
गोविंदा कांग्रेस से भले ही सांसद बन गए थे। लेकिन 4 साल बाद ही यानी 2008 में उन्होंने राजनीति से संन्यास लेने का ऐलान कर सबको चौंका दिया था।
2008 में गोविंदा ने अचानक राजनीति छोड़ी तो उसके पीछे की ठोस वजह बताई जाती है। कहा जाता है कि कांग्रेस का अपने प्रति व्यवहार देख उनका पार्टी से मोहभंग हो गया था।
दिग्गज पत्रकार, लेखक राशिद किदवई ने अपनी किताब 'नेता-अभिनेता : बॉलीवुड स्टार पावर इन इंडिया पॉलिटिक्स' में बताया कि कांग्रेस से इस्तीफ़ा देते वक्त गोविंदा पार्टी से नाराज़ चल रहे थे।
बताया जाता है कि कांग्रेस ने गोविंदा को 2009 के आम चुनाव में टिकट देने से इनकार कर दिया था। गोविंदा के पार्टी छोड़ने के फैसले को सोनिया गांधी और डॉ. मनमोहन सिंह ने मामूली माना था।
गोविंदा ने राजनीति छोड़ने का ऐलान किया तो ना तो 10 जनपथ पर उन्हें दर्शक दिए गए और ना ही उन्हें राज्यसभा भेजने की पेशकश की गई। यह उनके लिए जले पर नमक छिड़कने जैसा था।
गोविंदा ने कांग्रेस से नाराजगी की बात कभी खुलकर नहीं मानी। जब एक ऑथर ने उनसे इसे लेकर सवाल किया था तो उन्होंने कहा था- आप अपना निष्कर्ष निकालने के लिए स्वतंत्र हैं।
कथिततौर पर गोविंदा कांग्रेस की विचारधारा से ताल्लुक नहीं रखते थे। ना उसके कार्यक्रमों से उनका कोई लेना-देना था। लोकसभा सत्रों से वे नदारद रहा करते थे।
बताया जाता है कि सांसदी के 5 साल के कार्यकाल में गोविंदा सिर्फ 12% सत्रों में शामिल हुए थे। कांग्रेस ने गोविंदा के कुछ भाषणों और कमेंट्स को भी पार्टी की शर्मिंदगी की वजह माना था।