जब बच्चे को बार-बार डांटा जाता है या सख्ती से ट्रीट किया जाता है, तो उनके आत्मविश्वास में कमी आ सकती है। वे खुद को लेकर संकोची और असुरक्षित महसूस करने लगते हैं।
स्ट्रिक्ट पेरेंटिंग से बच्चों में खुद को व्यक्त करने में कमी हो सकती है। वे अपनी भावनाओं या रचनात्मक काम को करने में झिझकते हैं, जिससे उनका क्रिएटिविटी विकास बाधित हो सकता है।
ज्यादा डिसिप्लिन के कारण बच्चे स्वतंत्र निर्णय लेना नहीं सीख पाते। माता-पिता के अत्यधिक नियंत्रण के चलते वे अपनी पसंद और इच्छाओं को नज़रअंदाज करते हैं।
कुछ बच्चे सख्ती के प्रति विद्रोही हो जाते हैं। वे अपने माता-पिता की बात न मानने या नियमों का पालन न करने का तरीका खोज लेते हैं, जो उनके व्यवहार में निगेटिविटी ला सकता है।
सख्त पेरेंटिंग के चलते बच्चे में हमेशा डर और चिंता की भावना बनी रहती है। यह तनाव उनके मेंटल हेल्थ को प्रभावित करता है और उनकी खुशी को कम कर सकता है।
सख्ती के डर से बच्चे सच छुपाने या झूठ बोलने लगते हैं। वे अपनी गलतियों को स्वीकार करने से बचने के लिए झूठ का सहारा ले सकते हैं, जो उनकी ईमानदारी पर असर डाल सकता है।
अत्यधिक सख्ती के कारण बच्चे का इमोशनल जुड़ाव कम हो सकता है। वे अपनी भावनाओं को खुलकर बताने में कतराते हैं, जिससे उनमें इमोशन की कमी हो सकती है।
कठोरता से पालन-पोषण करने वाले माता-पिता के साथ बच्चों का रिश्ता कमज़ोर हो सकता है। उन्हें ऐसा लग सकता है कि उनके माता-पिता उनकी भावनाओं को नहीं समझते। वो बातचीत नहीं करते हैं।