मध्य प्रदेश समेत देश के कई राज्यों में गोंड आदिवासी समाज रहते हैं। जहां पर महिलाएं कभी विधवा नहीं रहती हैं।
पति की मौत के बाद भी यहां कि महिलाएं विधवा नहीं होती है। जवानी में पति की मौत हो या फिर बुढ़ापे में वो किसी भी उम्र में विधवा नहीं होतीं।
इस समाज की महिलाओं के पति की जब मृत्यु हो जाती है तो 10वें दिन उनका दोबारा विवाह करा दिया जाता है। मतलब वो अपने पति की मौत पर मातम भी नहीं मना पाती हैं।
महिला का दूसरा विवाह घर के ही किसी पुरुष के साथ करा दिया जाता है। पुरुष देवर भी हो सकता है या फिर उम्र में छोटा बच्चा भी। यहां की महिला किसी भी सूरत में विधवा नहीं रह सकती है।
गोंड समाज में अगर घर में कोई पुरुष उस महिला से शादी करने को तैयार नहीं होता है तो फिर 10वें दिन उसे चांदी की चूड़ी पहना दी जाती है। इसके बाद महिला को सुहागन मान लिया जाता है।
देश के कई हिस्सों में महिला के पति गुजरने के बाद उसे विधवा होने का श्राप भोगना पड़ता है। शादी तो दूर पराएं पुरुष को देखना भी मना होता है।साजों श्रृंगार पर रोक होती है।
गोंड समाज में इसे महिलाओं के सम्मान के रूप में देखा जाता है। उनकी सामाजिक सुरक्षा का ख्याल रखना पुरुषों की जिम्मेदारी होती है।