1962 के चुनाव से उंगली पर स्याही लगाई जा रही है। इसे चुनाव में शामिल करने का पूरा क्रेडिट देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन को है। इसे इलेक्शन इंक या इंडेलिबल इंक कहते हैं
इंडेलिबल इंक मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड (MVPL) बनाती है, जिसकी शुरुआत 1937 में महाराज नलवाडी कृष्णराजा वडयार ने किया था।
चुनावी स्याही या इलेक्शन इंक को कंपनी थोक के भाव नहीं बेचती है। इसे सरकार या चुनावी एजेंसियों को ही सप्लाई किया जाता है। कई दूसरे देशों में भी इस स्याही की सप्लाई होती है।
कितनी भी कोशिश करने के बावजूद चुनावी स्याही यानी इलेक्शन इंक को 72 घंटे यानी 3 दिनों तक नहीं मिटाया जा सकता है।
स्याही बनाने वाली कंपनी MVPL की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, इलेक्शन इंक बनाने के लिए सिल्वर नाइट्रेट केमिकल (Silver Nitrate) का यूज होता है, जिससे वह जल्दी नहीं मिटती है।
सिल्वर नाइट्रेट केमिकल जब पानी के संपर्क में आता है तो काले रंग या गहले नीले रंग का हो जाता है। जिससे यह मिटता नहीं है।
जब वोटर की उंगली पर स्याही लगता है तो सिल्वर नाइट्रेट शरीर में मौजूद नमक के साथ मिलकर सिल्वर क्लोराइड बना देता है, जो न पानी में घुलता है और ना ही हैंडवॉश या साबुन से मिटता है।
सिल्वर क्लोराइड तभी मिटेगी जब धीरे-धीरे स्किन सेल पुराने होते जाएंगे। कंपनी की वेबसाइट के अनुसार, 40 सेकेंड से भी कम में यह स्याही त्वचा पर सूख जाती है, जिससे छुड़ा पाना मुश्किल है
कुछ लोगों का दावा है कि कुछ खास केमिकल्स की मदद से इस स्याही को छुड़ाया जा सकता है, हालांकि, इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।