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क्या आप जानते हैं? छोंजिन अंगमो ने माउंट एवरेस्ट पर कैसे लहराया परचम?

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छोंजिन अंगमो ने दी दृष्टिहीनता को मात

दृष्टिहीनता को मात देकर छोंजिन अंगमो ने माउंट एवरेस्ट फतह कर इतिहास रच दिया। कौन है ये हिमाचली महिला जिसने नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया? जानिए संघर्षपूर्ण यात्रा के पीछे की वजह।

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इतिहास रचने वाली वीरांगना

छोंजिन अंगमो बनीं भारत की पहली दृष्टिबाधित महिला, जिन्होंने माउंट एवरेस्ट की चोटी पर फहराया तिरंगा। दुनिया की पांचवीं दृष्टिहीन पर्वतारोही बनीं।

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अंधेरे से ऊंचाई तक का सफर

किन्नौर की रहने वाली अंगमो ने 8 साल की उम्र में दृष्टि खोई, लेकिन कभी हार नहीं मानी। उनका सपना था दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ने का।

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शिक्षा में कायम कर रखी है मिसाल

अंधत्व के बावजूद अंगमो ने दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस से ग्रेजुएशन और पोस्ट-ग्रेजुएशन पूरा किया, और आज यूनियन बैंक में कार्यरत हैं।

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साहस और संकल्प की पहचान

अंगमो का मानना है कि "मेरा अंधापन मेरी ताकत है, कमजोरी नहीं।" उन्होंने हर चुनौती को अवसर में बदला और हिमालय की ऊंचाइयों तक पहुंचीं।

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पर्वतों की पुकार

उन्होंने पहले एवरेस्ट बेस कैंप तक ट्रैकिंग की, फिर लद्दाख की कांग यात्से चोटी फतह की। अब उनका लक्ष्य है सभी प्रमुख चोटियों को फतह करना।

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साइकिल पर सवार साहसी अंगमो

अंगमो ने मनाली से खारदुंगला, नीलगिरी और स्पीति घाटी जैसे दुर्गम क्षेत्रों में साइकिल अभियान चलाए, जो साहस की मिसाल हैं।

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सियाचिन पर भी फहराया परचम

2021 में ऑपरेशन ब्लू फ्रीडम के तहत सियाचिन ग्लेशियर पर चढ़ने वाली दिव्यांगों की टीम में अंगमो एकमात्र महिला थीं। उन्होंने वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया।

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देश के सर्वोच्च सम्मान से नवाज़ी गईं

छोंजिन अंगमो को राष्ट्रपति से ‘सर्वश्रेष्ठ दिव्यांगजन राष्ट्रीय पुरस्कार’ मिला। कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान भी मिले। वो उनके लिए प्रेरणा हैं जो चुनौतियों से नहीं डरते।

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