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एक ऐसा राज्य जिसने आज़ाद भारत को चुनौती दी थी – असली वजह क्या थी?

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हैदराबाद: एक समय था जब यह खुद एक स्वतंत्र राज्य था!

क्या हैदराबाद कभी एक स्वतंत्र राज्य था? जानिए निज़ामों की रहस्यमयी सत्ता, ऑपरेशन पोलो की सैन्य चाल और उस पहले मुख्यमंत्री की अनकही कहानी।

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एक विशाल रियासत था हैदराबाद

भारत की आज़ादी से पहले और उसके बाद भी कुछ समय तक हैदराबाद राज्य निज़ामों के शासन के तहत एक विशाल रियासत के रूप में मौजूद रहा।

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निज़ामों का शासन और हैदराबाद की स्थापना

1724 में मीर क़मर-उद-दीन खान उर्फ आसफ़ जाह I ने हैदराबाद राज्य की नींव रखी। यह दक्षिण भारत की सबसे समृद्ध रियासतों में एक था।

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भारत में शामिल होने से इनकार

1947 में आज़ादी के बाद हैदराबाद के निज़ाम ने भारतीय संघ में शामिल होने से इनकार कर दिया, जिससे विवाद की स्थिति बनी रही।

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ऑपरेशन पोलो – हैदराबाद का विलय

भारत सरकार ने 1948 में ‘ऑपरेशन पोलो’ के तहत सैन्य कार्रवाई की और हैदराबाद को भारतीय गणराज्य में मिला लिया।

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लोकतंत्र की शुरुआत

1952 में बुर्गुला रामकृष्ण राव हैदराबाद के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री बने, जिससे लोकतांत्रिक शासन की नींव पड़ी।

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राज्य पुनर्गठन 1956

1956 में हैदराबाद राज्य को भाषाई आधार पर विभाजित किया गया – तेलुगु, मराठी और कन्नड़ क्षेत्रों को अलग राज्यों में जोड़ा गया।

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राजनीतिक और सांस्कृतिक विरासत

हैदराबाद की ऐतिहासिक और राजनीतिक विरासत आज भी तेलंगाना, महाराष्ट्र और कर्नाटक के सांस्कृतिक जीवन में ज़िंदा है।

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मोतियों से इतिहास तक

आज का हैदराबाद सिर्फ 'मोतियों का शहर' नहीं, बल्कि भारत के लोकतंत्र और एकता की ऐतिहासिक मिसाल भी है।

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