गाजीपुर को वीरों की धरती कहा जाता है। पहले विश्व युद्ध से लेकर कारगिल युद्ध तक इस ज़िले ने भारत को कई नायक दिए।
गहमर गांव को "सैनिकों का गांव" कहा जाता है। यहां के युवा दिन-रात भारतीय सेना के लिए अपनी तैयारी करते हैं।
1914-1919 में गहमर के 228 युवा योद्धा प्रथम विश्व युद्ध में शामिल हुए। इनमें से 21 जवानों ने अपने प्राणों की आहुति दी।
गहमर का हर परिवार सेना से जुड़ा है। दादा रिटायर, बेटा सीमा पर और पोता तैयारी में। यह गांव सैनिकों का प्रतीक है।
गहमर गांव से अब तक 12000 से अधिक सैनिक भारतीय सीमाओं की रक्षा कर चुके हैं। यह गांव वीरता का सजीव उदाहरण है।
1966 में गहमर में भर्ती मेला हुआ था, जहां 22 युवकों ने पहली बार सेना में भर्ती होकर इतिहास रचा।
1984 तक गहमर में कई भर्ती शिविर लगे, जहां 37 युवक सेना में भर्ती हुए। यह प्रक्रिया 1985 के बाद बंद हो गई।
गहमर के युवा द्वितीय विश्व युद्ध से लेकर कारगिल युद्ध तक हर मोर्चे पर लड़े। एक भी सैनिक शहीद नहीं हुआ।
गहमर के युवाओं ने हर युद्ध में भाग लिया, लेकिन यहां के जवानों की सुरक्षा में कभी कमी नहीं आई। उनका विश्वास मां कामाख्या में है।
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