अयोध्या में 22 जनवरी को भव्य राम मंदिर का उद्घाटन है। वास्तु शास्त्र के हिसाब से राम मंदिर को नागर शैली में बनाया जा रहा है, जिसका डिजाइन गुजरात की सोमपुरा फैमिली ने तैयार किया है।
'नागर' शब्द नगर से बना है। नगर में निर्माण कार्य होने की वजह से इस शैली को नागर शैली कहा गया।
5वीं शताब्दी के बाद भारत के उत्तरी भाग में वास्तुकला की इस शैली का विकास हिमालय से लेकर विंध्य पर्वत तक के क्षेत्रों में हुआ। यह संरचनात्मक मंदिर निर्माण की एक शैली है।
वास्तुशास्त्र के मुताबिक, नागर शैली के मंदिर आधार से लेकर सर्वोच्च शिखर तक चतुष्कोण होते हैं। इस शैली के मंदिरों में दो भवन होते हैं।
नागर शैली में पहला भवन गर्भगृह और दूसरा मंडप कहलाता है। गर्भगृह ऊंचा होता है, जबकि मंडप उससे छोटा होता है।
गर्भ गृह के चारों ओर ढंका हुआ प्रदक्षिणा पथ भी होता है। खास बात ये है कि इस शैली से बनने वाले मंदिरों में लोहे और सीमेंट का उपयोग बिल्कुल भी नहीं किया जाता है।
चूंकि राम मंदिर निर्माण में बिल्कुल भी सीमेंट और लोहे का इस्तेमाल नहीं किया जाना था। इसलिए साधु-संतों और वैज्ञानिकों ने इसे प्राचीन नागर शैली से ही बनाने का फैसला किया।
ओडिशा का लिंगराज मंदिर और कोणार्क मंदिर इसके सबसे अच्छे उदाहरण हैं। इनके अलावा कंदरिया महादेव मंदिर खजुराहो, जगन्नाथ पुरी मंदिर ओडिशा और राजस्थान में दिलवाड़ा के मंदिर प्रमुख हैं।