साल 1836 में डेनिश जूलॉजिस्ट थिओडोर एडवर्ड कैंटर ने किंग कोबरा को एकल प्रजाति के रूप में वर्गीकृत किया था।
लेकिन भारतीय वैज्ञानिकों ने 12 साल के शोध के बाद किंग कोबरा को लेकर बड़ा खुलासा किया है। यह साबित किया है कि किंग कोबरा सिर्फ एक नहीं, चार अलग-अलग प्रजातियां हैं।
यह ऐतिहासिक खोज कर्नाटक के कैलिंगा सेंटर फॉर रेनफॉरेस्ट इकोलॉजी (Agumbe) में की गई, जहां डॉ. पी. गौरी शंकर और उनकी टीम ने 20 सालों की मेहनत से किंग कोबरा की असली पहचान सामने लाई।
1: नॉर्दर्न किंग कोबरा (Ophiophagus hannah) यह उत्तरी भारत, पूर्वी पाकिस्तान और थाईलैंड में पाई जाती है। इनके शरीर पर 5-70 बैंड्स होते हैं।
सुंडा किंग कोबरा इंडोनेशिया में पाए जाते हैं। इस सांप पर 70 से अधिक बैंड्स होते हैं।
वेस्टर्न घाट्स किंग कोबरा भारत के पश्चिमी घाटों में पाया जाता है। इसके शरीर पर सबसे कम बैंड्स होते हैं।
लुजोन किंग कोबरा दक्षिण फिलीपींस में पाया जाता है। यह पूरी तरह बिना बैंड वाला होता है।
वैज्ञानिकों ने सांपों के रंग, स्केल्स और बैंड्स का अध्ययन किया। हिमालय, इंडोनेशिया, फिलीपींस जैसे इलाकों से सैंपल्स इकट्ठा किए गए। DNA टेस्ट और शरीर की संरचना का विश्लेषण किया गया।
डॉ. गौरी शंकर ने कहा कि कोई सोच भी नहीं सकता था कि किंग कोबरा एक से अधिक प्रजातियों का समूह है। यह खोज सांपों के संरक्षण और उनके पारिस्थितिक महत्व को समझने के लिए बेहद अहम है।
किंग कोबरा को अब चार अलग-अलग प्रजातियों में बांटना न केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि है, बल्कि यह खोज इस सांप के प्रति समझ को भी पूरी तरह बदल देता है।
यह खोज साबित करती है कि भारतीय वैज्ञानिक न केवल पर्यावरण संरक्षण में योगदान दे रहे हैं, बल्कि दुनिया के सबसे खतरनाक सांप के बारे में अबतक चली आ रही मिथकों को भी तोड़ रहे हैं।