अरब इजरायल संघर्ष और मिस्र का काफी गहरा संबंध रहा है। पिछले कुछ दशकों में मिस्र इजरायल और फिलिस्तीन के बीच संतुलन स्थापित करने का काम करता आया है।
शुरू से ही मिस्र इस्लाम के लिए फिलिस्तीन का खुलकर समर्थन करता है। अरब इजरायल के बीच कई युद्धों में वह अरबों की तरफ रहा। इस बार भी इजरायल को आक्रमणकारी की तरह पेश किया।
इस जंग में मिस्र गाजा पट्टी खाली कराने, मानवीय मदद और दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थता कर स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खुद मजबूत कर सकता है लेकिन इजराइल को नाराज करना नहीं चाहता।
1928 से सक्रिय मुस्लिम ब्रदरहुड को 2013 में मिस्र ने खत्म कर दिया। हमास इसी संगठन की पैदाइश है। इसीलिए मिस्र भले ही फिलिस्तीन को सपोर्ट करता है लेकिन हमास को खतरा मानता है।
2017 से हमास-मिस्र में आतंकवाद से लड़ने तालमेल दिखा है। जबकि इजरायल मिस्र के संबंध ज्यादा गर्मजोशी वाले नहीं हैं। 1979 में शांति समझौता बाद से दोनों में द्विपक्षीय सहयोग बढ़ा है
कुछ सालों में मिस्र इजरायल-हमास के बीच मध्यस्थ की भूमिका में रहा। मिस्र इजरायल के खिलाफ सैन्य कार्रवाई में उलझना नहीं चाहता और गाजा के लोगों को अपने यहां प्रवेश भी नहीं देना चाहता।
मिस्र ने गाजा के लोगों को सिनाई इलाके में भेजने से इनकार कर दिया है। वह सिनाई प्रायद्वीप में अपनी संप्रभुता से समझौता नहीं चाहता है। इससे सुरक्षा-आर्थिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
गाजा से आए शरणार्थी हमास का हिस्सा भी हो सकते हैं। ऐसे में मिस्र में अस्थिरता पैदा हो सकती है। इससे सिनाई प्रायद्वीप से इजरायल पर हमला हो सकता है, जो मिस्र-इजरायल संबंध खराब करेगा।
मिस्र युद्ध संकट टालने के साथ गाजा में कॉरिडोर की मांग कर रहा है। हमास की हार के बाद अगर फिलिस्तीन में नई सरकार बनती है तो उसमें मिस्र की सक्रिय भूमिका हो सकती है।