सार
धर्म ग्रंथों के अनुसार, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशमी का पर्व मनाया जाता है। इसे गंगा दशहरा भी कहते हैं। इस बार गंगा दशहरा पर्व को लेकर पंचांगो में मतभेद है।
उज्जैन. कुछ ज्योतिषियों का मानना है कि ये पर्व 9 जून, गुरुवार को मनाया जाएगा तो कुछ का कहना है कि उदया तिथि 10 जून, शुक्रवार को होने से इस दिन ये पर्व मनाया जाना शास्त्र सम्मत रहेगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, राजा भगीरथ के अथक प्रयासों से इसी तिथि पर देवनदी गंगा धरती पर आई थी। देवनदी गंगा के बारे में ग्रंथों में कई रोचक बातें बताई गई हैं। गंगा महाभारत के पात्रों में से भी एक है। भीष्म पितामाह गंगा के ही आठवें पुत्र थे। देवनदी गंगा को भरतवंशी राजा शांतनु से क्यों विवाह करना पड़ा और क्यों गंगा ने अपने पुत्रों को नदी में प्रवाहित किया। इससे जुड़ी कथा इस प्रकार है…
इसलिए देवनदी गंगा को करना पड़ा शांतनु से विवाह
प्राचीन समय में इक्ष्वाकुवंश में महाभिष नामक एक प्रसिद्ध राजा थे। अपने पुण्य कर्मों से उन्हें स्वर्ग लोक की प्राप्ति हो गई। एक दिन जब राजा महाभिष देवराज इंद्र की सभा में बैठे हुए थे, तभी वहां देवनदी गंगा का आना हुआ। उसी समय हवा के झोंके से गंगा के वस्त्र थोड़े सरक गए। यह देखकर सभी देवताओं ने अपनी नजरें नीचे झुका ली, लेकिन राजा महाभिष उन्हें एकटक देखते रहे।
यह देख ब्रह्माजी ने क्रोध में आकर राजा महाभिष को श्राप दिया कि “तुम्हारे इस अपराध के कारण तुम्हें मनुष्य लोक में जन्म लेना पड़ेगा और जिस गंगा ने तुम्हारा चित्त चुराया है वह भी पृथ्वी पर आकर तुम्हारे विपरीत आचरण करेगी। जब तुम उस पर क्रोध करोगे तो वह तुम्हे छोड़कर चली जाएगी। इसी के बाद तुम इस श्राप से मुक्त हो पाओगे।
इस श्राप के कारण ही राजा महाभिष ने द्वापरयुग में राजा प्रतीप के पुत्र शांतनु के रूप में जन्म लिया। एक दिन जब राजा शांतनु गंगा किनारे घूम रहे थे, तभी उन्हें एक सुंदर स्त्री दिखाई दी (वह सुंदर स्त्री देवनदी गंगा ही थीं)। उसकी सुंदरता देखकर शांतनु ने उसके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। उस सुंदर स्त्री ने शांतनु से कहा कि “विवाह के बाद आप मुझे किसी काम के लिए रोकेंगे नहीं। नहीं तो मैं उसी पल आपको छोड़कर चली जाऊंगी।” राजा शांतनु ने वह शर्त स्वीकार कर ली।
इसलिए गंगा ने अपने पुत्रों को नदी में बहाया
विवाह के बाद शांतनु के एक के बाद एक सात पुत्रों ने जन्म लिया, लेकिन उन सभी को उस स्त्री (गंगा) ने नदी में प्रवाहित कर दिया। शांतनु स्त्री मोह में चुपचाप यह देखते रहे क्योंकि उन्हें डर था कि यदि मैंने इससे इसका कारण पूछा तो यह मुझे छोड़कर चली जाएगी। जब वह स्त्री शांतनु के आठवे पुत्र को नदी में डालने लगी तो शांतनु ने उसे रोककर इसका कारण पूछा। तब उस स्त्री ने बताया कि “मैं देवनदी गंगा हूं। आपके जिन पुत्रों को मैंने नदी में प्रवाहित किया है वे सभी वसु नामक देवता थे। वसिष्ठ ऋषि के श्राप से मुक्त करने लिए ही मैंने उन्हें नदी में प्रवाहित किया। शर्त न मानते हुए आपने मुझे रोका। इसलिए मैं अब जा रही हूं। ऐसा कहकर गंगा शांतनु के आठवें पुत्र को लेकर अपने साथ चली गई। यही आठवां पुत्र आगे जाकर भीष्म कहलाया।
ऋषि वसिष्ठ ने क्यों दिया था वसुओं को श्राप?
महाभारत के अनुसार, एक बार द्यौ आदि वसुओं ने ऋषि वसिष्ठ की गाय नंदिनी का हरण कर लिया, जिससे क्रोधित होकर ऋषि ने उन्हें मनुष्य रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया। क्षमा मांगने पर ऋषि ने कहा कि “तुम सभी वसुओं को तो शीघ्र ही मनुष्य योनि से मुक्ति मिल जाएगी, लेकिन इस द्यौ नामक वसु को बहुत दिनों तक पृथ्वीलोक में रहना पड़ेगा।”
यह बात जब देवनदी गंगा को पता चली तो उन्होंने कहा कि “मैं तुम सभी को अपने गर्भ में धारण करूंगी और तत्काल मनुष्य योनि से मुक्त कर दूंगी।” गंगा ने ऐसा ही किया। वसिष्ठ ऋषि के श्राप के कारण द्यौ नामक वसु ने भीष्म के रूप में जन्म लिया और पृथ्वी पर रहकर दुख भोगने पड़े।
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