सार
हरिद्वार में आयोजित होने वाले कुंभ मेले की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। प्रमुख अखाड़ों की धर्म ध्वजा भी स्थापित हो चुकी हैं और साधु-संत पेशवाई के रूप में शहर में प्रवेश भी कर चुके हैं। 11 मार्च को महाशिवरात्रि पर्व का पहला शाही स्नान होगा। इसके बाद अप्रैल में 3 शाही स्नान होंगे।
उज्जैन. कुंभ मेले में शामिल होने वाले अधिकांश साधु-संत किसी न किसी अखाड़े से जुड़े होते हैं। इन अखाड़ों की अपनी एक अलग परंपरा होती है। वर्तमान में 13 अखाड़े प्रमुख हैं, इनमें से 7 शैवों के 3 वैष्णवों के व 3 सिक्खों के हैं। आगे जानिए इन 13 अखाड़ों के बारे में खास बातें…
1. निरंजनी अखाड़ा (शैव)
ऐसा माना जाता है कि निरंजनी अखाड़े की स्थापना सन 904 में गुजरात के माण्डवी नामक स्थान पर हुई थी। लेकिन यह तिथि जदुनाथ सरकार के मत में सन् 1904 है, जिसको निरंजनी स्वीकार नहीं करते क्योंकि उनके पास एक प्राचीन तांबे की छड़ है जिस पर निरंजनी अखाड़े के स्थापना के बारे में विक्रम संवत् 960 अंकित है। इस अखाड़े के इष्टदेव भगवान कार्तिकेय हैं, जो देवताओं के सेनापति हैं। निरंजनी अखाड़े के साधु शैव हैं व जटा रखते हैं।
2. महानिर्वाणी अखाड़ा (शैव)
निर्वाणी अखाड़े का केंद्र हिमाचल प्रदेश के कनखल में है। इस अखाड़े की अन्य शाखाएं प्रयाग, ओंकारेश्वर, काशी, त्र्यंबक, कुरुक्षेत्र, उज्जैन व उदयपुर में है। उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में भस्म चढ़ाने वाले महंत निर्वाणी अखाड़े से ही संबंध रखते हैं।
3. आवाहन अखाड़ा (शैव)
आवाहन अखाड़ा, जूना अखाड़े से सम्मिलित है। कहा जाता है कि इस अखाड़े की स्थापना सन् 547 में हुई थी, लेकिन जदुनाथ सरकार इसे 1547 बताते हैं। इस अखाड़े का केंद्र दशाश्वमेघ घाट, काशी में है। इस अखाड़े के संन्यासी भगवान श्रीगणेश व दत्तात्रेय को अपना इष्टदेव मानते हैं क्योंकि ये दोनों देवता आवाहन से ही प्रगट हुए थे। हरिद्वार में इनकी शाखा है।
4. जूना अखाड़ा (शैव)
जूना अखाड़ा पहले भैरव अखाड़े के रूप में जाना जाता था, क्योंकि उस समय इनके इष्टदेव भैरव थे जो कि शिव का ही एक रूप हैं। वर्तमान में इस अखाड़े के इष्टदेव भगवान दत्तात्रेय हैं, जो कि रुद्रावतार हैं। इस अखाड़े के अंतर्गत आवाहन, अलखिया व ब्रह्मचारी भी हैं। इस अखाड़े की विशेषता है कि इस अखाड़े में अवधूतनियां भी शामिल हैं और इनका भी एक संगठन है।
5. अटल अखाड़ा (शैव)
इस अखाड़े के इष्टदेव भगवान श्रीगणेश हैं। इनके शस्त्र-भाले को सूर्य प्रकाश के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस अखाड़े की स्थापना गोंडवाना में सन् 647 में हुई थी। इसका केंद्र काशी में है। इस अखाड़े का संबंध निर्वाणी अखाड़े से है। काशी के अतिरिक्त बड़ौदा, हरिद्वार, त्र्यंबक, उज्जैन आदि में इसकी शाखाएं हैं।
6. आनंद अखाड़ा (शैव)
यह अखाड़ा विक्रम संवत् 856 में बरार में बना था, जबकि सरकार के अनुसार विक्रम संवत् 912 है। इस अखाड़े के इष्टदेव सूर्य हैं। इस अखाड़े की अधिकांश परंपराएं लुप्त होने की कगार पर है, तो भी काशी में इसके साधु रहते चले आ रहे हैं।
7. अग्नि अखाड़ा (शैव)
अग्नि अखाड़े के बारे में कहा जाता है कि इसकी स्थापना सन् 1957 में हुई थी, हालांकि इस अखाड़े के संत इसे सही नहीं मानते। इसका केंद्र गिरनार की पहाड़ी पर है। इस अखाड़े के साधु नर्मदा-खण्डी, उत्तरा-खण्डी व नैस्टिक ब्रह्मचारी में विभाजित है।
8. दिगंबर अखाड़ा (वैष्णव)
इस अखाड़े की स्थापना अयोध्या में हुई थी। यह अखाड़ा लगभग 260 साल पुराना है। सन 1905 में यहां के महंत अपनी परंपरा में 11वें थे। दिगंबर निम्बार्की अखाड़े को श्याम दिगंबर और रामानंदी में यही अखाड़ा राम दिगंबर अखाड़ा कहा जाता है।
9. निर्वाणी अखाड़ा (वैष्णव)
इसकी स्थापना अभयरामदासजी नाम के संत ने की थी। आरंभ से ही यह अयोध्या का सबसे शक्तिशाली अखाड़ा रहा है। हनुमानगढ़ी पर इसी अखाड़े का अधिकार है। इस अखाड़े के साधुओं के चार विभाग हैं- हरद्वारी, वसंतिया, उज्जैनिया व सागरिया।
10. निर्मोही अखाड़ा (वैष्णव)
इस अखाड़े की स्थापना 18वीं सदी के आरंभ में गोविंददास नाम के संत ने की थी, जो जयपुर से अयोध्या आए थे। निर्मोही शब्द का अर्थ है मोह रहित।
11. निर्मल अखाड़ा (सिक्ख)
इस अखाड़े की स्थापना सिख गुरु गोविंदसिंह के सहयोगी वीरसिंह ने की थी। आचरण की पवित्रता व आत्मशुद्धि इनका मूल मंत्र है। ये सफेद कपड़े पहनते हैं। इसके ध्वज का रंग पीला या बसंती होता है और ऊन या रुद्राक्ष की माला हाथ में रखते हैं। इस अखाड़े के अनुयायियों का मुध्य उद्देश्य गुरु नानकदेवजी के मूल सिद्धांतों का पालन करना है।
12. बड़ा उदासीन अखाड़ा (सिक्ख)
इस अखाड़े का स्थान कीटगंज, इलाहाबाद में है। यह उदासी का नानाशाही अखाड़ा है। इस अखाड़े में चार पंगतों में चार महंत इस क्रम से होते हैं-1. अलमस्तजी का पंक्ति का, 2. गोविंद साहबजी का पंक्ति का, 3. बालूहसनाजी की पंक्ति का, 4. भगत भगवानजी की परंपरा का।
13. नया उदासीन अखाड़ा (सिक्ख)
सन् 1902 में उदासीन साधुओं में मतभेद हो जाने के कारण महात्मा सूरदासजी की प्रेरणा से एक अलग संगठन बनाया गया, जिसका नाम उदासीन पंचायती नया अखाड़ा रखा गया। इस अखाड़े में केवल संगत साहब की परंपरा के ही साधु सम्मिलित हैं। इस अखाड़े का पंजीयन 6 जून, 1913 को करवाया गया।
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