सार
श्रीमद्भागवत को हिंदू धर्म में बड़ा ही पवित्र ग्रंथ माना जाता है। इसके माध्यम से ही भगवान श्रीकृष्ण ने संसार को धर्मानुसार कर्म करने की प्रेरणा दी। वास्तव में यह उपदेश भगवान श्रीकृष्ण कलयुग के मापदंड को ध्यान में रखते हुए ही दिया है। इसमें लाइफ मैनेजमेंट से जुड़ी कुछ नीतियों के बारे में भी बताया गया है।
उज्जैन. श्रीमद्भागवत को हिंदू धर्म में बड़ा ही पवित्र ग्रंथ माना जाता है। इसके माध्यम से ही भगवान श्रीकृष्ण ने संसार को धर्मानुसार कर्म करने की प्रेरणा दी। वास्तव में यह उपदेश भगवान श्रीकृष्ण कलयुग के मापदंड को ध्यान में रखते हुए ही दिया है। इसमें लाइफ मैनेजमेंट से जुड़ी कुछ नीतियों के बारे में भी बताया गया है। इन नीतियों को समझकर हम कई परेशानियों से बच सकते हैं। ऐसी ही एक नीति ये भी है…
श्लोक
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारम नाशनमात्मन:।
काम: क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्।।
अर्थ- काम, क्रोध, और लोभ ये तीनों चीजें आत्मा का नाश करने वाली और नरक के तीन द्वार हैं। अतः इन तीनों का तुरंत त्याग कर देना चाहिए।
कामभावना से होता है पतन
व्यक्ति को सदैव अपनी कामभावना पर नियंत्रण रखना चाहिए। अपने जीवनसाथी के अलावा किसी के भी प्रति कामभावना नहीं रखनी चाहिए। काम के वेग में मनुष्य कई बार गलत काम कर बैठता है, जिसके कारण उसका पूरा जीवन नष्ट हो जाता है।
न करें क्रोध
मनुष्य को क्रोध आना स्वभाविक होता है लेकिन अत्यधिक क्रोध के कारण व्यक्ति को सही और गलत का ध्यान नहीं रहता है। उसका मस्तिष्क कार्य नहीं कर पाता है, जिससे उसकी सोचने समझने की शक्ति नष्ट हो जाती है और कई बार व्यक्ति स्वयं का ही अहित कर बैठता है। क्रोध में आकर व्यक्ति कई बार बहुत गलत कार्य भी कर जाते हैं। व्यक्ति को क्रोध का त्याग करना चाहिए।
लोभ की भावना
लोभ या लालच व्यक्ति को अनुचित कार्य करने के लिए अग्रसर करता है जो बर्बादी का कारण बनता है। इंसान में संतुष्टि की भावना रहना चाहिए। दूसरे की चीजें या धन देखकर मन में लालच नहीं लाना चाहिए। लालच करने से एक न एक दिन स्वयं का ही नुकसान करता है।
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