भविष्य पुराण में बताए गए हैं सूर्यदेव के 12 स्वरूप, यही करते हैं सृष्टि का निर्माण और विनाश

हिंदू धर्म में सूर्यदेव को प्रत्यक्ष देवता कहा जाता है यानी वो देवता जिन्हें हम अपनी आंखों से देख सकते हैं। इसलिए किसी भी शुभ कार्य से पहले पंचदेवों में सूर्यदेव की भी पूजा की जाती है।

Asianet News Hindi | Published : Jan 15, 2020 3:31 AM IST / Updated: Jan 15 2020, 11:42 AM IST

उज्जैन. मकर संक्रांति पर भी सूर्यदेव की पूजा का विशेष महत्व है। भविष्य पुराण में सूर्यदेव को ही परब्रह्म यानी जगत की सृष्टि, पालन और संहार शक्तियों का स्वामी माना गया है। ये काम सूर्यदेव 12 अलग-अलग रूपों में करते हैं। इसलिए सूर्य उपासना में सूर्य के साथ इन 12 रूपों की पूजा भी करनी चाहिए। जानिए सूर्य की इन 12 रूपों के नाम, स्थिति और कार्य -

1. इन्द्र- सूर्यदेव का यह रूप देवराज होकर सभी दैत्य व दानव रूपी दुष्ट शक्तियों का नाश करता है।
2. धाता- यह रूप प्रजापति होकर सृष्टि का निर्माण करता है।
3. पर्जन्य- सूर्यदेव का यह रूप किरणों में बसकर वर्षा करवाता है।
4. पूषा- यह रूप मंत्रों में स्थित होकर जगत का पोषण व कल्याण करता है।
5. त्वष्टा- सूर्यदेव का यह रूप पेड़-पौधों, जड़ी-बूटियों में बसता है।
6. अर्यमा - यह रूप पूरे जगत का रक्षक है।
7. भग- सूर्यदेव का यह रूप धरती और पर्वतों में स्थित है।
8. विवस्वान्- अग्रि में स्थित हो जीवों के खाए अन्न का पाचन करता है।
9. अंशु- चन्द्रमा में बसकर पूरे जगत को शीतलता प्रदान करता है।
10. विष्णु- सूर्यदेव का यह रूप अधर्म का नाश करने के लिए अवतार लेता है।
11. वरुण- यह समुद्र में बसकर जल द्वारा जगत को जीवन देता है। यही कारण है समुद्र का एक नाम वरुणालय भी है।
12. मित्र- सूर्य के यह रूप चंद्रभागा नदी के तट पर मित्रवन नामक स्थान पर स्थित है। मान्यता है कि सूर्यदेव ने यहां मात्र वायु ग्रहण कर तपस्या की।

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