माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को अचला सप्तमी का व्रत किया जाता है। इसे रथ सप्तमी भी कहते हैं।
उज्जैन. इस व्रत की विधि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताई थी। इस बार यह व्रत 1 फरवरी, शनिवार को है। इस व्रत की विधि इस प्रकार है-
ये है व्रत की संपूर्ण विधि
- सप्तमी तिथि की सुबह जल्दी उठकर नदी या सरोवर पर जाकर स्नान करें। सोने, चांदी अथवा तांबे के दीपक में तिल का तेल डालकर जलाएं।
- दीपक को सिर पर रखकर ह्रदय में भगवान सूर्य का इस प्रकार ध्यान करें-
नमस्ते रुद्ररूपाय रसानाम्पतये नम:।
वरुणाय नमस्तेस्तु हरिवास नमोस्तु ते।।
यावज्जन्म कृतं पापं मया जन्मसु सप्तसु।
तन्मे रोगं च शोकं च माकरी हन्तु सप्तमी।
जननी सर्वभूतानां सप्तमी सप्तसप्तिके।
सर्वव्याधिहरे देवि नमस्ते रविमण्डले।।
- इसके बाद दीपक को नदी में बहा दें। दोबारा स्नान कर देवताओं व पितरों का तर्पण करें और चंदन की टहनी से भोजपत्र पर अष्टदल कमल बनाएं।
- उस कमल के बीच में शिव-पार्वती की मूर्ति स्थापित कर प्रणव-मंत्र से पूजा करें और पूर्वादि आठ दलों में क्रम से भानु, रवि, विवस्वान, भास्कर, सविता, अर्क, सहस्त्रकिरण तथा सर्वात्मा की पूजा करें।
- इन नामों के शुरुआत में ऊं कार, चतुर्थी विभक्ति तथा अंत में नम: लगाएं जैसे- ऊं भानवे नम:, ऊं रवये नम: इत्यादि।
- इस प्रकार फूल, धूप, दीप, नैवेद्य तथा वस्त्र आदि उपचारों से विधिपूर्वक भगवान सूर्य की पूजा कर- स्वस्थानं गम्यताम यह कहकर विसर्जित कर दें।
- बाद में तांबे अथवा मिट्टी के बर्तन में गुड़ और घी सहित तिल का चूर्ण तथा सोने का एक आभूषण रख दें।
- इसके बाद लाल कपड़े से ढंककर पुष्प-धूप आदि से पूजा करें और वह बर्तन योग्य ब्राह्मण को दान कर दें।
- फिर सपुत्रपशुभृत्याय मेर्कोयं प्रीयताम् (पुत्र, पशु, भृत्य समन्वित मेरे ऊपर भगवान सूर्य मेरे ऊपर प्रसन्न हो जाएं) ऐसी प्रार्थना करें।
- फिर गुरु को वस्त्र, तिल, गाय और दक्षिणा देकर तथा शक्ति के अनुसार अन्य ब्राह्मणों को भोजन कराकर व्रत का समापन करें।
अचला सप्तमी व्रत का महत्व इस प्रकार है-
- अचला सप्तमी को पुराणों में रथ, सूर्य, भानु, अर्क, महती तथा पुत्र सप्तमी भी कहा गया है। इस दिन व्रत करने से संपूर्ण माघ मास के स्नान का फल मिलता है।
- अचला सप्तमी के महत्व का वर्णन स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को कहा था। धर्मग्रंथों के अनुसार इस दिन यदि विधि-विधान से व्रत व स्नान किया जाए तो संपूर्ण माघ मास के स्नान का पुण्य मिलता है।
- व्रत के रूप में इस दिन नमक रहित एक समय एक अन्न का भोजन अथवा फलाहार करने का विधान है। एक मान्यता यह भी है कि अचला सप्तमी व्रत करने वाले को वर्षभर रविवार व्रत करने का पुण्य प्राप्त हो जाता है।
- जो अचला सप्तमी के महत्व को श्रद्धा भक्ति से कहता अथवा सुनता है तथा उपदेश देता है वह भी उत्तम लोकों को प्राप्त करता है।
अचला सप्तमी व्रत की कथा इस प्रकार है-
- मगध देश में इंदुमती नाम की एक वेश्या रहती थी। एक दिन उसने सोचा कि यह संसार तो नश्वर है फिर किस प्रकार यहां रहते हुए मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है?
- यह सोच कर वह वेश्या महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में चली गई और उनसे कहा- मैंने अपने जीवन में कभी कोई दान, तप, जाप, उपवास आदि नहीं किए हैं।
- आप मुझे कोई ऐसा व्रत बतलाएं जिससे मेरा उद्धार हो सके। तब वशिष्ठजी ने उसे अचला सप्तमी स्नान व व्रत की विधि बतलाई।
- वेश्या ने विधि-विधान पूर्वक अचला सप्तमी का व्रत व स्नान किया, जिसके प्रभाव से वह वेश्या बहुत दिनों तक सांसारिक सुखों का उपभोग करती हुई देहत्याग के पश्चात देवराज इंद्र की सभी अप्सराओं में प्रधान नायिका बनी।