Kalbhairav Ashtami 2021: भगवान शिव के क्रोध से प्रकट हुए थे कालभैरव, आज इन चीजों का भोग लगाकर करें पूजा

इस बार 27 नवंबर को अगहन महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि है। इस दिन काल भैरव अष्टमी (Kalbhairav Ashtami 2021) मनाई जाती है। शिव पुराण के मुताबिक इस तिथि पर भगवान शिव के गुस्से प्रदोष काल में भैरव प्रकट हुए थे।

Asianet News Hindi | Published : Nov 26, 2021 2:09 PM IST

उज्जैन. भैरव का एक रूप काल भैरव की अगहन कृष्ण अष्टमी पर पूजा की जाती है। इनके साथ ही भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा भी की जाती है। भगवान शिव ने सभी शक्तिपीठों की रक्षा की जिम्मेदारी भगवान भैरव को दी थी। इसलिए सभी शक्तिपीठ मंदिरों में काल भैरव का भी विशेष पूजन किया जाता है। काल भैरव के दर्शन के बिना देवी मंदिरों के दर्शन का पुण्य अधूरा माना जाता है।

काल भैरव पूजा विधि
- काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी के अनुसार, भगवान भैरव की पूजा प्रदोष काल (शाम 5.35 से रात 8 बते तक) और अर्धरात्रि (रात 12 से 3 के बीच) में करना चाहिए।
- इनकी पूजा में चमेली का फूल चढ़ाएं। सरसों के तेल का चौमुखा दीपक लगाएं और पूरा नारियल दक्षिणा के साथ चढ़ाएं। प्रदोष काल या मध्यरात्रि में जरूरतमंद को दोरंगा कंबल दान करें।
- इस दिन ऊं कालभैरवाय नम: मंत्र का 108 बार जाप करें। पूजा के बाद भगवान भैरव को जलेबी या इमरती का भोग लगाएं। इस दिन अलग से इमरती बनाकर कुत्तों को खिलाएं।

क्या चढ़ा सकते हैं काल भैरव को?
काल भैरव को अलग-अलग भोग लगाए जा सकते हैं। जिसमें केले के पत्ते पर पके हुए चावल का नैवेद्य लगाएं। गुड़-बेसन की रोटी बनाकर भोग लगा सकते हैं। इस भोग में से खुद प्रसाद रूप में थोड़ा सा लेना चाहिए। कुत्तों को गुड़-बेसन की रोटी खिलाने के लिए अलग से बनानी चाहिए।

शिव-शक्ति की तिथि अष्टमी
अष्टमी पर काल भैरव प्रकट हुए थे। इसलिए इस तिथि को कालाष्टमी कहते हैं। इस तिथि के स्वामी रूद्र होते हैं। साथ ही कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि पर भगवान शिव की पूजा करने की परंपरा है। सालभर में अष्टमी तिथि पर आने वाले सभी तीज-त्योहार देवी से जुड़े होते हैं। इस तिथि पर शिव और शक्ति दोनों का प्रभाव होने से भैरव पूजा और भी खास होती है। इस तिथि पर भय को दूर करने वाले को भैरव कहा जाता है। इसलिए काल भैरव अष्टमी पर पूजा-पाठ करने से नकारात्मकता, भय और अशांति दूर होती है।

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