Baisakhi 2022: बैसाखी पर हुई थी खालसा पंथ की स्थापना, सिक्खों की कुर्बानी से जुड़ी है ये महत्वपूर्ण घटना

हर साल मेष संक्रांति यानी 13-14 अप्रैल को पंजाब, हरियाणा व उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में बैसाखी (Baisakhi 2022) पर्व बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 14 अप्रैल, गुरुवार को मनाया जाएगा। इस पर्व पर लोग एक-दूसरे से गले मिलते हैं, बधाइयां देते हैं और नाचते-गाते हैं।

Manish Meharele | Published : Apr 13, 2022 5:17 AM IST / Updated: Apr 13 2022, 01:04 PM IST

उज्जैन. पंजाब में बैसाखी की शाम को सभी लोग एक स्थान पर इकट्ठे होकर पारंपरिक नृत्यु गिद्धा और भांगड़ा कर खुशियां मनाते हैं। इस दिन से ही पंजाबी नववर्ष का आरंभ भी माना जाता है। वैसे तो ये पर्व नई फसल आने की खुशी में मनाया जाता है, लेकिन इसके पीछे सिक्खों के कुर्बानी से जुड़ी एक कहानी भी है, जिसके बारे में कम ही लोग जानते हैं। आज हम आपको उसी के बारे में बता रहे हैं, जो इस प्रकार है…

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गुरु गोविंदसिंह ने की थी खालसा पंथ की स्थापना
जब भारत पर मुगल शंहशाह औरंगजेब का राज था। उस समय गुरु तेगबहादुर (Guru Tegh Bahadur) ने उसका डंटकर मुकाबला किया। पकड़े जाने पर औरंगजेब ने उनका कत्ल करवा दिया। इसके बाद उनकी गद्दी पर उनके पुत्र गुरु गोविंद सिंह (Guru Gobind Singh) को बैठाया गया। उस समय उनकी उम्र मात्र 9 वर्ष थी। 
गुरु गोविंदसिंह ने अपने धर्म और जन्मभूमि की रक्षा के लिए मुगलों का सामना किया और उनकी जड़े हिला दीं। उन्होंने लोगों को संगठित होकर देश के प्रति बलिदान देने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने देश से जातिवाद मिटाने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए।  गुरु गोविंदसिंह ने सन 1699 में बैसाखी पर्व पर खालसा पंथ (Khalsa Panth) की स्थापना की थी। 
इसके लिए उन्होंने एक सभा आयोजित की। इस सभा में हजारों लोग आए। गुरु गोविंदसिंह ने यहां लोगों से जोश भरी बातें की और कहा कि “ जो लोग देश और धर्म के लिए अपना जीवन बलिदान करने के लिए तैयार हैं, वे ही आगे आएं।”
उनकी बात सुनकर भीड़ में से एक लड़का बाहर आया। गुरु जी उसे अपने साथ तंबू में गए और खून से सनी तलवार लेकर बाहर आए। उन्होंने फिर लोगों से बलिदान देने को कहा। एक लड़का फिर आगे बढ़ा। गुरु उसे भी अंदर ले गए और खून से सनी तलवार के साथ बाहर आए। इस तरह पांच नवयुवक तैयार हो गए।
गुरु गोविंदसिंह जब उन्हें तंबू से निकालकर बाहर लाए तो उन्होंने सफेद पगड़ी और केसरिया रंग के कपड़े पहने हुए थे। यही पांच युवक उस दिन से 'पंच प्यारे' कहलाए। इन पंच प्यारों को गुरु जी ने अमृत (पवित्र जल जो सिख धर्म धारण करने के लिए पिया जाता है) चखाया। इसके बाद इसे बाकी सभी लोगों को भी पिलाया गया। इस प्रकार धर्म और देश की रक्षा के लिए खालसा पंथ की स्थापना की गई।

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