Bhishma Ashtami 8 फरवरी को, इसी दिन हुई थी भीष्म पितामाह की मृत्यु, इस दिन व्रत करने से दूर होता है पितृ दोष

माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भीष्म अष्टमी (Bhishma Ashtami 2022) कहते हैं। इस तिथि पर व्रत करने का विशेष महत्व है। यह बार यह व्रत 8 फरवरी, मंगलवार को है। धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर अपने प्राण त्यागे थे।

Asianet News Hindi | Published : Feb 1, 2022 1:22 PM IST / Updated: Feb 07 2022, 10:54 AM IST

उज्जैन. भीष्म अष्टमी पर प्रत्येक हिंदू को भीष्म पितामह के निमित्त कुश, तिल व जल लेकर तर्पण करना चाहिए। मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से संस्कारी संतान की प्राप्ति होती है। इस दिन पितामह भीष्म के निमित्त तर्पण करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन को पितृदोष निवारण के लिए उपाय भी किए जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो लोग उत्तरायण में अपने प्राण त्यागते हैं, उनको जीवन-मृत्यु के चक्र से छुटकारा मिल जाता है, वे मोक्ष को प्राप्त करते हैं। आइए जानते हैं कि इस वर्ष भीष्म अष्टमी (Bhishma Ashtami 2022) तिथि, मुहूर्त, महत्व के बारे में… 

भीष्म अष्टमी तिथि एवं मुहूर्त
अष्टमी तिथि आरंभ: 08 फरवरी, मंगलवार, प्रात: 06: 15 मिनट से 
अष्टमी तिथि समाप्त: 09 फरवरी, बुधवार। प्रातः 08:30 मिनट पर 

शुभ मुहूर्त 
भीष्म अष्टमी का मुहूर्त : प्रातः 11: 29 मिनट से दोपहर 01:42 मिनट तक 

भीष्म अष्टमी का महत्व
मान्यता के अनुसार, भीष्म अष्टमी का व्रत जो व्यक्ति करता है उसके सभी पाप दूर हो जाते हैं। साथ ही उन्हें पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है। इस दिन भीष्म पितामह का तर्पण जल, कुश और तिल से किया जाता है। श्रीमद्भगवद्गीता में बताया गया है कि किस तरह अर्जुन के तीरों से घायल होकर महाभारत के युद्ध में जख्मी होने के बावजूद भीष्म पितामह 58 दिनों तक मृत्यु शैय्या पर लेटे थे। इसके बाद उन्होंने माघ शुक्ल अष्टमी तिथि को चुना और मोक्ष प्राप्त किया।

ऐसे निकले थे भीष्म पितामाह के प्राण
भीष्म पितामह 58 दिनों तक बाणों की शैया पर रहे। युद्ध समाप्त होने के बाद जब सूर्य उत्तरायण हुआ तब उन्होंने अपने प्राणों का का त्याग किया। महाभारत के अनुसार, भीष्म पितामाह ने योगक्रिया के द्वारा अपने प्राण छोड़े थे। भीष्म अपने प्राणों को प्राणवायु को रोककर जिस-जिस अंग के ऊपर चढ़ाते जाते, वहां के घाव भर जाते थे। थोड़ी देर में उनके शरीर के सभी घाव भर गए और प्राण ब्रह्मरंध्र यानी मस्तक को फोड़कर निकल गए।


 

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