कहते हैं जान है तो जहान है और यदि जान बचाने के लिए विपरीत परिस्थिति से पीठ दिखाकर भागना भी पड़े तो भी इसमें कोई बुराई नहीं है। जीवित रहेंगे तो आप फिर से अपने लिए अनुकूल परिस्थिति का निर्माण कर लेंगे। आचार्य चाणक्य ने ये बात अपनी एक नीति में भी बताई है।
उज्जैन. चाणक्य नीति (Chanakya Niti) के अनुसार, जीवन में कभी-कभी ऐसे हालात निर्मित हो जाते हैं, जब यदि हम त्वरित निर्णय न लें तो किसी भयंकर परेशानी में फंस सकते हैं और हमारी जान भी जा सकती है। ऐसी स्थिति में अपनी जान बचाना हमारा सबसे पहला धर्म होता है। आचार्य चाणक्य ने चार ऐसे हालात बताए हैं, जब व्यक्ति को तुरंत भाग निकलना चाहिए। यहां जानिए ऐसे चार हालात कौन-कौन से हैं और वहां से भागना क्यों चाहिए…
आचार्य चाणक्य कहते हैं-
उपसर्गेऽन्यचक्रे च दुर्भिक्षे च भयावहे।
असाधुजनसंपर्के य: पलायति स जीवति।।
1. आचार्य चाणक्य के अनुसार, यदि किसी स्थान पर अचानक दंगा हो जाए तो अपनी सूझ-बूझ का इस्तेमाल करते हुए वहां से तुरंत जान बचाकर भाग जाना चाहिए क्योंकि दंगे के दौरान हम भी लोगों के गुस्से का शिकार हो सकते हैं और अपनी जान गंवा सकते हैं। साथ ही जब शासन-प्रशासन इस प्रकार की स्थिति से निपटने के लिए बल प्रयोग करता है तो हम उसका शिकार भी हो सकते हैं। इसलिए जहां दंगा या कोई उपद्रव हो रहा हो, वहां से तुरंत भाग जाना चाहिए।
2. अगर किसी से हमारी दुश्मनी है और वो अचानक अपनी पूरी ताकत से साथ हम पर हमला कर दे और हमारे पास उसका जवाब देने के लिए समय और साथी न हो तो वहां जान बचाकर भागने में ही भलाई समझना चाहिए। ऐसी स्थिति में अक्सर लोग बहादुरी दिखाने के चक्कर में अपनी जान गंवा बैठते हैं। बहादुर होना अच्छी बात है लेकिन परिस्थितियों के समझना भी जरूरी है, नहीं तो बेवजह हमारी जान जा सकती है।
3. आचार्य चाणक्य के अनुसार, जिस स्थान पर आप रहते हैं, वहां यदि दुर्भिक्ष यानी अकाल पड़ जाए तो उस जगह को छोड़ देना चाहिए, क्योंकि ऐसी जगह ज्यादा दिन जीवित रह पाना मुश्किल होता है। अकाल वाले क्षेत्र में न तो खाने को कुछ मिलता है और न पीने को। ऐसे स्थान पर जीविका चलाना भी मुश्किल होता है। इसलिए ऐसी स्थान को तुरंत छोड़कर अन्य सुरक्षित स्थान की ओर निकल जाना चाहिए।
4. अगर कोई शातिर अपराधी या कोई ऐसा व्यक्ति जिसका समाज में मान-सम्मान न हो, हमारे पास आकर खड़ा हो जाए तो उसे बातों में उलझाकर तुरंत वहां से निकल जाना चाहिए। अपराधी के साथ खड़े होने से हम भी पुलिस की शंका के दायरे में आ सकते हैं, वहीं जिस व्यक्ति का समाज में मान-सम्मान न हो, उसके साथ खड़े होने से हमारी सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल हो सकती है।
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