सिर्फ हिंदू ही नहीं जैन और बौद्ध धर्म में भी माना गया है चातुर्मास का महत्व

20 जुलाई, मंगलवार से चातुर्मास की शुरूआत हो चुकी है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन 4 महीनों में भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं।

Asianet News Hindi | Published : Jul 21, 2021 7:06 AM IST

उज्जैन. 20 जुलाई, मंगलवार से चातुर्मास की शुरूआत हो चुकी है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन 4 महीनों में भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं। इसलिए इस दौरान मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है। इसके बाद कार्तिक महीने में शुक्लपक्ष की एकादशी पर भगवान योगनिद्रा से जागते हैं। इस एकादशी को देवउठानी एकादशी और प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है।

चातुर्मास का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व
- चातुर्मास यानी चार महीनों का समय। हिंदू कैलेंडर में आषाढ़ महीने के आखिरी दिनों में चातुर्मास शुरू हो जाता है। जो कि सावन, भादौ, अश्विन और कार्तिक महीने के आखिरी दिनों तक रहता है।
- पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र के अनुसार इन दिनों में ही हिंदू धर्म के सभी खास तीज-त्योहार मनाए जाते हैं। चातुर्मास के दौरान आषाढ़ के आखिरी दिनों में भगवान वामन और गुरु पूजा, सावन में शिव आराधना, भाद्रपद में भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव, आश्विन में शारदीय नवरात्रि, कार्तिक महीने में दीपावली और भगवान विष्णु के जागरण के साथ ही तुलसी विवाह महापर्व मनाया जाता है।
- धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी चातुर्मास में परहेज करने और संयम अपनाने का महत्व है। इस समय बारिश होने से हवा में नमी बढ़ जाती है। इस कारण बैक्टीरिया, कीड़े-मकोड़े, जीव जंतु आदि की संख्या बढ़ जाती है। इनसे बचने के लिए खाने-पीने में परहेज किया जाता है।

जैन धर्म में चातुर्मास
जैन और बौद्ध धर्म में चातुर्मास का बड़ा ही महत्व होता है। साधु संत इस दौरान एक ही स्थान पर रहकर साधना और पूजा पाठ करते हैं। जैन धर्म को अहिंसा के मार्ग पर चलने वाला धर्म माना गया है। इनके सिद्धांतों के अनुसार, बारिश के मौसम में कई प्रकार के कीड़े, सूक्ष्म जीव सक्रिय हो जाते हैं। ऐसे में मनुष्य के अधिक चलने-फिरने से जीव हत्या का पाप लग सकता है। यही वजह है साधु-संत एक ही स्थान पर रूकते हैं।

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