Chhath Puja 2021: त्रेता और द्वापर युग में चली आ रही है छठ पूजा की परंपरा, जानिए इससे जुड़ी कथाएं

छठ पूजा (Chhath Puja 2021) का पर्व 8 नवंबर, सोमवार से शुरू हो चुका है। 10 नवंबर, बुधवार को अस्त होते सूर्य को और 11 नवंबर, गुरुवार को उगते हुए सूर्य को अर्ध्य देकर इस व्रत का समापन किया जाएगा। यह पर्व नहाय-खाए से आरंभ होता है और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही इस पर्व का समापन हो जाता है यानि छठ पूजा चार दिवसीय उत्सव है।

Asianet News Hindi | Published : Nov 8, 2021 2:32 PM IST

उज्जैन. छठ व्रत के दौरान व्रतधारी (व्रत करने वाले) लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते। वैसे तो ये पर्व बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में मुख्य रूप से मनाया जाता है, लेकिन अन्य स्थानों पर भी छठ पर्व (Chhath Puja 2021) के प्रति लोगों की आस्था देखने को मिलती है। इस पर्व से बहुत-सी लोककथाएं जुड़ी हैं। आज हम आपको इन्हीं कथाओं के बारे में बता रहे हैं…

राजा प्रियवद ने की छठी मैया की पूजा 
पुराणों के अनुसार, राजा प्रियवद एक न्यायप्रिय राजा थे। लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया और राजा की पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र तो हुआ परंतु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन तुम मेरा पूजन करो तथा और लोगों को भी प्रेरित करो। राजा ने ऐसा ही किया, जिसके प्रभाव से उनका मृत पुत्र जीवित हो गया। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी। मान्यता है तभी से मानस कन्या देवसेना को देवी षष्ठी या छठी मैया के रूप में पूजा जाता है।

श्रीराम और माता सीता ने की थी सूर्यदेव की उपासना 
एक पौराणिक लोककथा भगवान श्रीराम से भी जुड़ी है। उसके अनुसार लंका विजय के बाद राम राज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान श्रीराम और माता सीता ने उपवास किया था और सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था। तभी से छठ पर्व की परंपरा चली आ रही है।

द्रौपदी द्वारा भी की गई थी सूर्य पूजा 
एक अन्य कथा के अनुसार पांडवों की पत्नी द्रौपदी द्वारा भी सूर्य की पूजा करने का उल्लेख है। वनवास के दौरान द्रौपदी ने निरंतर सूर्यदेव की पूजा की और छठ व्रत किया। वे अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं। इसी व्रत के प्रभाव से पांडवों को कौरवों पर विजय प्राप्त हुई और उनका खोया वैभव लौट आया।

सूर्य पुत्र कर्ण ने की सूर्य देव की पूजा 
एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्यदेव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य का परम भक्त था। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बना था। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है।

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