जहां श्रीकृष्ण स्वयं आए भक्त से मिलने, वहां स्थित है प्राचीन मंदिर, देवउठनी एकादशी पर लगता है मेला

Devuthani Ekadashi 2022: हमारे देश में विशेष मौकों पर कई धार्मिक यात्राएं निकाली जाती हैं। ऐसी ही एक यात्रा देवउठनी एकादशी पर महाराष्ट्र के पंढरपुर में भी निकाली जाती है। ये यात्रा बहुत प्रसिद्ध है। इसे देखने दूर-दूर से लोग यहां आते हैं।
 

उज्जैन. इस बार 4 नवंबर, शुक्रवार को देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi 2022) का व्रत किया जाएगा। मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु नींद से जागते हैं। ये त्योहार पूरे देश में बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है। इस मौके पर महाराष्ट्र (Maharashtra) के पंढरपुर (Pandharpur) में मेला लगता है और यात्रा भी निकाली जाती है। यहां भगवान श्रीकृष्ण का एक प्राचीन है। यहां श्रीकृष्ण को विट्ठल (Vitthal Rukmini Mandir) कहा जाता है। इस मौके पर लाखों लोग भगवान विट्ठल और देवी रुक्मणि की महापूजा देखने के लिए एकत्रित होते हैं। आगे जानिए इस यात्रा और मंदिर से जुड़ी खास बातें…

800 साल से जारी है ये परंपरा 
कहते हैं कि पंढरपुर की यात्रा पिछले 800 सालों से लगातार आयोजित हो रही है। वारकरी संप्रदाय के लोग यहां यात्रा करने के लिए आते हैं। वारकरी संप्रदाय के लोग भगवान श्रीकृष्ण को विट्ठल कहते हैं और इनके परम भक्त होते हैं। वारी का अर्थ है यात्रा करना या फेरे लगाना। इनकी वेश-भूषा से भी इनकी पहचान हो जाती है। इनके कंधे पर भगवा रंग का झंडा रहता है। गले में तुलसी की माला होती है और ये गले, छाती, दोनों भुजाएं , कान एवं पेट पर चन्दन लगाते हैं।

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जानें मंदिर से जुड़ी खास बातें
पंढरपुर में स्थित भगवान श्रीकृष्ण का ये मंदिर काफी प्राचीन है। इसके किनारे भीमा नदी बहती है। मंदिर परिसर में ही भक्त चोखामेला और संत नामदेव की समाधि भी है। कहते हैं कि विजयनगर साम्राज्य के राजा कृष्णदेव भगवान विट्ठल की प्रतिमा को अपने राज्य में ले गए थे किंतु बाद में एक महाराष्ट्रीय भक्त इसे दोबार ले आया और इसे पुन: स्थापित कर दिया।

संत पुंडलिक से जुड़ी है ये कथा
- 6वीं सदी में एक प्रसिद्ध संत हुए, उनका नाम पुंडलिक था। वे भगवान श्रीकृष्ण के साथ-साथ अपने माता-पिता के भी परम भक्त थे। मान्यता है कि एक बार स्वयं भगवान श्रीकृष्ण उनसे मिलने आए। उस समय महात्मा पुंडलिक अपने पिता के पैर दबा रहे थे। - श्रीकृष्ण ने घर के बाहर से उनसे कहा कि ‘पुंडलिक, हम तुम्हारा आतिथ्य ग्रहण करने आए हैं।’ महात्मा पुंडलिक ने भगवान को देखा और कहा कि ‘इस समय मैं मेरे पिता का पैर दबा रहा हूं, आप कुछ देर प्रतीक्षा कीजिए। भगवान श्रीकृष्ण कमर पर दोनों हाथ रखकर खड़े हो गए। 
- भगवान श्रीकृष्ण का यही स्वरूप विट्ठल कहलाया। श्रीकृष्ण उसी स्वरूप में मूर्ति बनकर सदैव के लिए स्थापित हो गए। वही प्रतिमा आज भी मंदिर में स्थापित है। इसी मंदिर के नजदीक भक्तराज पुंडलिक का स्मारक भी बना हुआ है। यहां साल में दो बार मेला लगता है- देवउठनी एकादशी और देवशयनी एकादशी पर।

कैसे पहुंचें?
- पंढरपुर का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन कुर्दुवादि है। जो देश के प्रमुख रेलवे लाइनों से जुड़ा है। यहां आकर पंढरपुर आसानी से पहुंचा जा सकता है। 
- महाराष्ट्र के सभी शहरों से पंढरपुर सड़क मार्ग से सीधे जुड़ा हुआ है। नॉर्थ कर्नाटक और उत्तर-पश्चिम आंध्रप्रदेश से भी प्रतिदिन यहां के लिए बसें चलती हैं।
- पंढरपुर का का निकटतम हवाईअड्डा पुणे है, जो यहां से लगभग 245 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां से पंढरपुर के लिए साधन आसानी से मिल जाते हैं।


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