Dhanteras 2022: कौन हैं भगवान धन्वंतरि, धनतेरस पर क्यों की जाती है इनकी पूजा?

Dhanteras 2022: धनतेरस पर भगवान धन्वन्तरि की पूजा का विधान है। इस बार ये पर्व 22 अक्टूबर, शनिवार को मनाया जाएगा। भगवान धन्वन्तरि कौन हैं और इनकी उत्पत्ति कैसे हुई, बहुत कम लोग इस बारे में जानते हैं। 
 

Manish Meharele | Published : Oct 20, 2022 4:17 AM IST

उज्जैन. हिंदू धर्म में अनेक देवी-देवताओं की मान्यता है, भगवान धन्वंतरि (Lord Dhanvantari) भी इनमें से एक है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को इनकी पूजा की जाती है। इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। इस बार ये पर्व 22 अक्टूबर, शनिवार को है। भगवान धन्वंतरि कौन हैं, इनकी उत्पत्ति कैसे हुई, इसके बारे में कम ही लोग जानते हैं। धनतेरस के मौके पर जानिए इनके बारे में खास बातें…

कौन हैं भगवान धन्वंतरि, कैसे हुई इनकी उत्पत्ति? (who is lord dhanwantri)
ग्रंथों के अनुसार धन्वंतरि भगवान विष्णु के अंशावतार हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। ऊपर की दो भुजाओं में आयुर्वेद ग्रंथ और अमृत कलश है, जबकि नीचे की भुजाओं में से एक में शंख और दूसरी में औषधि है। जब देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो उसमें से कई रत्न निकलें जैसे- कामधेनु, अप्सराएं, ऐरावत हाथी आदि। सबसे अंत में भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर निकलें। इसलिए उनके हर चित्र में अमृत कलश जरूर दर्शाया जाता है। 

धनतेरस पर ही क्यों की जाती है धन्वंतरि की पूजा? (Why do we worship Dhanvantari on Dhanteras?)
पुराणों के अनुसार, भगवान धन्वतंरि जिस दिन समुद्र से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए, उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि थी। इसी वजह से धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि की पूजा का विधान है। इनकी प्रिय धातु पीतल है, इसीलिये धनतेरस पर पीतल आदि के बर्तन खरीदने की परंपरा भी है। औषधियों का स्वामी और आरोग्य का देवता होने के चलते चिकित्सा संस्थानों में इनकी पूजा विशेष रूप से की जाती है। 

आयुर्वेद के स्वामी हैं धन्वतंरि
भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद का जनक भी कहा जाता है। ग्रंथों के अनुसार, इन्होंने ही जीवनदायिनी औषधियों की खोज की और इसके उपयोग के बारे में बताया। आयुर्वेद का वर्णन धन्वंतरि संहिता में ही मिलता है। काशिराज धन्व की तपस्या से प्रसन्न हो कर भगवान ने उसके पुत्र के रूप में जन्म लिया और धन्वंतरि नाम धारण किया। महर्षि विश्वामित्र के पुत्र सुश्रुत ने इन्हीं से आयुर्वेदिक चिकित्सा की शिक्षा प्राप्त की और आयुर्वेद के 'सुश्रुत संहिता' की रचना की।


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