दशहरा: किन-किन योद्धाओं ने किया था रावण को पराजित, किस गलती के कारण हुआ सर्वनाश?

प्रतिवर्ष आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा पर्व (Dussehra 2021) मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 15 अक्टूबर, शुक्रवार को है। इस दिन पूरे देश में बुराई के प्रतीक रावण के पुतलों का दहन किया जाता है।

Asianet News Hindi | Published : Oct 13, 2021 10:09 AM IST

उज्जैन. धर्म ग्रंथों के अनुसार, रावण महापंडित था और ज्योतिष का भी जानकार थी, लेकिन फिर भी वह पाप कर्मों में लिप्त रहता था। इसी वजह से वह भगवान श्रीराम के हाथों मारा गया। कहते हैं रावण ने तीनों लोकों पर विजय प्राप्त की थी, लेकिन 3 योद्धाओं से वह भी नहीं जीत पाया। आगे जानिए कब-कब और कैसे हुई रावण की हार…

जब बालि से हारा रावण
रावण को जब पता चला कि वानरों का राजा बालि भी परम शक्तिशाली है तो वह उससे लड़ने किष्किंधा पहुंच गया। बालि उस समय पूजा कर रहा था। रावण ने बालि को युद्ध के लिए ललकारा तो बालि ने गुस्से में उसे अपनी बाजू में दबा लिया और समुद्रों की परिक्रमा करने लगा। रावण ने बालि के बाजू से निकलने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हो पाया। पूजा के बाद जब बालि ने रावण को छोड़ तो वह निढाल हो चुका था। इसके बाद रावण को बालि को अपना मित्र बना लिया।

सहस्त्रबाहु अर्जुन से भी हारा रावण
जब राक्षसराज रावण ने सभी राजाओं को जीत लिया, तब वह महिष्मती नगर (वर्तमान में महेश्वर) के राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन को जीतने उनके नगर गया। नर्मदा के तट पर ही रावण और सहस्त्रबाहु अर्जुन में भयंकर युद्ध हुआ। अंत में सहस्त्रबाहु अर्जुन ने रावण को बंदी बना लिया। जब यह बात रावण के पितामह (दादा) पुलस्त्य मुनि को पता चली तो वे सहस्त्रबाहु अर्जुन के पास आए और रावण को छोडऩे के लिए निवेदन किया। सहस्त्रबाहु अर्जुन ने रावण को छोड़ दिया और उससे मित्रता कर ली।

राजा बलि के महल में रावण की हार
धर्म ग्रंथों के अनुसार, पृथ्वी व स्वर्ग की जीतने के बाद रावण पाताल लोक को जीतना चाहता था। उस समय दैत्यराज बलि पाताल लोक के राजा थे। एक बार रावण राजा बलि से युद्ध करने के लिए पाताल लोक में उनके महल तक पहुंच गया था। वहां पहुंचकर रावण ने बलि को युद्ध के लिए ललकारा, उस समय बलि के महल में खेल रहे बच्चों ने ही रावण को पकड़कर घोड़ों के साथ अस्तबल में बांध दिया था। इस प्रकार राजा बलि के महल में रावण की हार हुई।

ये 1 गलती पड़ गई भारी
रावण विश्वविजेता बनना चाहता था, लेकिन उसे पता था कि बिना वरदान के ये संभव नहीं है। इसलिए उसने भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए तपस्या करनी शुरू की। रावण के तप से जब ब्रह्माजी प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे वरदान मांगने के लिए कहा। तब रावण ने ब्रह्माजी से कहा- वानर और मनुष्य के अलावा और कोई मुझे न मार सके। ब्रह्माजी ने रावण को ये वरदान दे दिया। रावण ने समझा कि देवता भी मुझसे डरते हैं तो मनुष्य और वानर तो तुच्छ प्राणी हैं। ये तो मेरे लिए भोजन के समान हैं। वानर और मनुष्य को तुच्छ समझकर रावण ने अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल की। यही भूल उसके अंत का कारण बनी। रावण अगर ये गलती न करता तो शायद श्रीराम भी उसे न मार पाते।

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