सभी को अपने जीवन में उतारना चाहिए भगवान श्रीराम के ये 8 लाइफ मैनेजमेंट सूत्र

धर्म ग्रंथों में भगवान श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है। श्रीराम ने अपने जीवन में अनेक आदर्श स्थापित किए हैं। आज हम आपको भगवान श्रीराम के लाइफ मैनेजमेंट सूत्रों के बारे में बता रहे हैं । 

उज्जैन. भगवान होकर भी उन्होंने एक मनुष्य की तरह दुख झेले और प्रयासों के माध्यम से ही सफलता प्राप्त की। आज हम आपको भगवान श्रीराम के लाइफ मैनेजमेंट सूत्रों के बारे में बता रहे हैं, जिसे हर व्यक्ति को अपने जीवन में उतारना चाहिए। ये 8 लाइफ मैनेजमेंट सूत्र इस प्रकार हैं…

1. माता-पिता के आज्ञाकारी
श्रीराम ने अपने पिता की आज्ञा से राज-पाठ का एक पल में त्याग कर दिया, वो भी उस समय जब उनका राजतिलक होने वाला था। राजा दशरथ ने दुखी होकर उन्हें ये भी बोल दिया था कि तुम मुझे बंदी बना लो और बलपूर्वक राजा बन जाओ, लेकिन श्रीराम ने अपने पिता का वचन निभाने के लिए सहर्ष ही 14 वर्ष का वनवास स्वीकार कर लिया।

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2. जीवन भर निभाया एक पत्नी व्रत का नियम
श्रीराम ने जीवन भर एक पत्नी व्रत का पालन किया। देवी सीता के जाने के बाद जब भी श्रीराम ने कोई अनुष्ठान किया, पत्नी के रूप में सोने से निर्मित देवी सीता की प्रतिमा को अपने पास स्थान दिया। श्रीराम ने देवी सीता के अतिरिक्त किसी अन्य महिला को अपने जीवन में स्थान नहीं दिया।

3. सभी भाइयों को समान प्रेम
श्रीराम ने अपने सभी भाइयों लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न को समान रूप से स्नेह दिया। इसी कारण उनके छोटे भाइयों में कभी विवाद की स्थिति नहीं बनी। क्रोधी स्वभाव का होने के कारण लक्ष्मण ने कई बार भरत को भला-बुरा कहा। तब श्रीराम ने लक्ष्मण को समझाया और सभी भाइयों को एक समान आदर व स्नेह देने की सीख दी।

4. नई पीढ़ी को मौका दिया
युद्ध से पहले जब लंका में शांति दूत भेजने की बात आई तो श्रीराम ने अंगद को चुना। अंगद नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करता है। इसका अर्थ ये है कि मौका मिलने पर नई पीढ़ी को आगे बढ़ाना चाहता है। समय पर मौका न मिलने से नई पीढ़ी हताश हो सकती है।

5. ऊंच-नीच का भेद मिटाया
वनवास के दौरान श्रीराम शबरी से मिले। शबरी निम्न जाति की थी और श्रीराम राजकुल के थे। इसके बाद भी उन्होंने शबरी के झूठे बेर खाकर सामाजिक समरसता का परिचय दिया। श्रीराम ने ये संदेश दिया कि सच्ची श्रृद्धा से कोई भी ईश्वर की कृपा पा सकता है।

6. मित्रता के लिए तत्पर
श्रीराम ने अपने जीवन में जिसे भी मित्र बनाया, उसका सदैव साथ दिया। बाली के भय से वन में भटक सुग्रीव को निर्भय कर राजा बनाया। इसी तरह विभीषण को भी लंका की राजगद्दी पर बैठाया। साथ ही दोनों को राजधर्म का पालन करने के सूत्र भी दिए। निषाधराज को श्रीराम ने अपने भाई भरत के समान स्नेह दिया।

7. हर स्थिति में सहज
श्रीराम राजकुमार थे। बचपन से ही सुख-सुविधाओं में पढ़े-बढ़े थे। राजतिलक के एक दिन पूर्व जब अचानक उन्हें वनवास पर जाना पड़ा तो पिता का वचन निभाने के लिए उन्होंने एक पर की भी देर नहीं की। वनवास के दौरान अनेक कष्ट रहे, हर स्थिति में सहज बने रहे। यहां श्रीराम ने यह सूत्र दिया कि जीवन में सुख और दुख का आना-जाना लगा ही रहता है। दोनों ही अवस्थाओं में सहज बने रहना चाहिए।

8. सभी की सलाह लेकर काम करें
रामायण में अनेक प्रसंग ऐसे आते हैं जब श्रीराम ने अपने साथी हनुमान, सुग्रीव, विभीषण आदि की सलाह लेकर कोई निर्णय लिया हो। यहां श्रीराम सीखाते हैं कि कोई भी बड़ा निर्णय स्वयं नहीं लेना चाहिए। अपने अधीनस्थों या परिजनों से विचार कर ही किसी निर्णय पर पहुंचना चाहिए।
 

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