Ganesh Chaturthi 2022: श्रीगणेश की पूजा में नहीं चढ़ाते ये चीज, एक श्राप है इसका कारण

Ganesh Chaturthi 2022: इस बार 31 अगस्त, बुधवार को गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाएगा। घर-घर में भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा स्थापित की जाएगी और इसी के साथ 10 दिनों तक चलने वाले गणेश उत्सव का भी आरंभ होगा।
 

Manish Meharele | Published : Aug 24, 2022 8:28 AM IST

उज्जैन. धर्म ग्रंथों के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2022) का पर्व मनाया जाएगा। मान्यता के अनुसार, इसी तिथि पर भगवान श्रीगणेश का जन्म हुआ था। इस बार ये पर्व 31 अगस्त, बुधवार को मनाया जाएगा। भगवान श्रीगणेश से जुड़ी कई कथाएं हमारे धर्म ग्रंथों में मिलती है। इनकी पूजा में अनेक चीजें चढ़ाई जाती हैं, लेकिन तुलसी चढ़ाने की मनाही है, जबकि तुलसी को परम पवित्र माना जाता है। इससे जुड़ी एक कथा गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित गणेश अंक में मिलती है जो इस प्रकार है…

जब तुलसी ने देखा भगवान श्रीगणेश को
धर्म ग्रंथों के अनुसार, एक बार भगवान श्रीगणेश तपस्या में लीन थे। तभी वहां से तुलसीदेवी का जाना हुआ। वे विवाह की इच्छा से भ्रमण कर रही थीं। तपस्या में रत श्रीगणेश को देखकर तुलसी देवी उन पर आसक्त हो गईं। तुलसी ने जाकर श्रीगणेश की तपस्या भंग की और अपने मन की बात बताई। तब श्रीगणेश ने स्वयं को ब्रह्मचारी और भगवान विष्णु का भक्त बताकर तुलसी के विवाह प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।

तुलसी और श्रीगणेश ने दिया एक-दूसरे को श्राप
श्रीगणेश के विवाह प्रस्ताव ठुकराने से क्रोधित होकर तुलसी ने उन्हें श्राप दिया कि तुमने स्वयं को ब्रह्मचारी बताकर मेरे विवाह प्रस्ताव को अस्वीकार किया है, इसलिए तुम्हारी एक नहीं बल्कि दो पत्नियां होंगी। ये सुनकर श्रीगणेश को भी क्रोध आ गया और उन्होंने तुलसी देवी को श्राप दिया कि तुम्हारा विवाह एक असुर से होगा। दोनों ने जब एक-दूसरे को श्राप दे दिया तो उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ। 

दोनों ने मानी अपनी गलती
जब देवी तुलसी और भगवान श्रीगणेश ने एक-दूसरे को श्राप दिया तो उन दोनों को अपनी गलती का अहसास हुआ। तब श्रीगणेश ने तुलसी से कहा कि मेरे श्राप के फलस्वरूप तुम्हारा विवाद असुर से जरूर होगा लेकिन बाद में तुम एक पवित्र पौधे के रूप धारण करोगी और भगवान विष्णु की प्रिय बनोगी। लेकिन मेरी पूजा में कभी तुम्हारा उपयोग नहीं होगा। पद्मपुराण आचाररत्न में भी लिखा है कि न तुलस्या गणाधिपम अर्थात् तुलसी से गणेश जी की पूजा कभी न करें।


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