किस देवी की पूजा करते हैं किन्नर, कहां है इनका मंदिर, क्या चढ़ाते हैं इन्हें?

वर्तमान समय में स्त्री और पुरूष के अलावा थर्ड जेंडर को भी भी मान्यता दी जाने लगी है। इस थर्ड जेंडर को लोग भारत में किन्नर के नाम से जाना जाता है। यानी ये न तो पूरे स्त्री होते हैं और न ही पुरुष। इन्हें और भी कई नामों से बुलाया जाता है।
 

Manish Meharele | Published : Dec 4, 2022 6:17 AM IST

उज्जैन. हिंदू धर्म ग्रंथों में कई स्थानों पर स्त्री-पुरुष के अलावा यक्ष, गंधर्व और किन्नरों का वर्णन भी मिलता है। किन्नर वो होते हैं जो न तो पूरी तरह से पुरुष होते हैं और न ही पूरी तरह से स्त्री। वर्तमान समय में इन्हें थर्ड जेंडर कहा जाता है। किन्नरों की दुनिया बहुत ही रहस्यमयी होती है। इनके बारे में सभी लोग जानने के लिए उत्सुक रहते हैं। किन्नरों के जीवन पर कई किताबें लिखी जा चुकी हैं, साथ ही कई शार्ट फिल्म भी बनाई जा चुकी हैं। किन्नर किस देवी की पूजा करते हैं, ये बात ही बहुत कम लोग जानते हैं। आज हम आपको इसी के बारे में बताने जा रहे हैं। आगे जानिए किन्नरों की देवी के बारे में…

इन देवी की पूजा करते हैं किन्नर
किन्नरों की कुलदेवी का नाम बहुचरा देवी है। इन्हें मुर्गे वाली माता भी कहा जाता है क्योंकि इनका वाहन मुर्गा है। किन्नर जहां भी रहते हैं वहां इनकी पूजा जरूर करते हैं। किन्नर बहुचरा माता को अर्धनारीश्वर के रूप में पूजते हैं। वैसे तो इनके देश में कई मंदिर हैं लेकिन मुख्य मंदिर गुजरात के मेहसाणा में है। इस मंदिर में मुर्गे वाली माता की प्रतिमा विराजमान है। ये मंदिर भी काफी विशाल है। इसका मंदिर का निर्माण 1739 में वडोदरा के राजा मानाजीराव गायकवाड़ ने करवाया था।

देवी को चढ़ाते हैं चांदी के मुर्गे
किन्नर अपनी कुलदेवी बहुचरा को चांदी से निर्मित मुर्गे चढ़ाते हैं। पहले बहुचरा माता को किन्नर काला मुर्गा चढ़ाते थे। बाद में सरकार ने इस पर रोक लगा दी। इसके बाद से वे चांदी का मुर्गा चढ़ाते हैं। माता का स्वरूप अत्यंत सौम्य है। इनके एक हाथ में तलवार और दूसरा हाथ अभय मुद्रा में है। मान्यता है कि बहुचरा माता की पूजा से नि:संतान दंपत्ति को संतान की प्राप्ति होती है। इसलिए यहां रोज हजारों भक्त माता के दर्शनों के लिए आते हैं।

ये कथा भी है प्रचलित
कथा के अनुसार, एक बार अल्लाउद्दीन द्वितीय जब पाटण को जीतकर इस मंदिर को तोड़ने पहुंचा तो यहां देवी के वाहन मुर्गे इधर-उधर घूम रहे थे। अल्लाउद्दीन के सैनिकों ने उन मुर्गों को पकाकर खा लिया। एक मुर्गा बचा रह गया। सुबह जब उसने बांग देना शुरू किया, तो सैनिकों के पेट के अंदर बैठे मुर्गे भी बांग देने लगे और पेट फाड़कर बाहर आने लगे। घबराकर सैनिक मंदिर तोड़े बिना ही भाग गए।


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