Guru Purnima 2022: जिनके सम्मान में मनाया जाता है गुरु पूर्णिमा पर्व, वे आज भी जीवित हैं, जानिए कौन हैं वो?

धर्म ग्रंथों के अनुसार, आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि पर गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima 2022) का उत्सव मनाया जाता है। इस बार ये तिथि 13 जुलाई, बुधवार को है। इस तिथि का हिंदू धर्म में विशेष महत्व माना गया है क्योंकि ये तिथि महर्षि वेदव्यास (Maharishi Ved Vyas) का समर्पित है।

उज्जैन. महर्षि वेदव्यास के के सम्मान में गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाए जाने की परंपरा है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, महर्षि वेदव्यास भगवान विष्णु के अवतार हैं। इनके पिता महर्षि पाराशर (Maharishi Parashar) और माता सत्यवती (Satyavati) थी। जन्म लेते ही ये युवा हो गए और तपस्या करने द्वैपायन द्वीप चले गए। तपस्या से वे काले हो गया। इसलिए उन्हें कृष्ण द्वैपायन कहा जाने लगा। वेदों का विभाग करने से वे वेदव्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए। इन्होंने ही महाभारत जैसे विशाल ग्रंथ की रचना भी की। आगे जानिए महर्षि वेदव्यास से जुड़ी खास बातें… 

अमर हैं महर्षि वेदव्यास
धर्म ग्रंथों के अनुसार महर्षि वेदव्यास अमर हैं। इस बात का प्रमाण है ये श्लोक- अश्वत्थामा बलिव्यासो हनूमांश्च विभीषण:। 
कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्। 
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।
अर्थ- अश्वथामा, दैत्यराज बलि, वेद व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि, इन आठ अमर है। रोज सुबह इनका नाम लेने से लंबी आयु मिलती है।

मृत योद्धाओं का कर दिया था जीवित
महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद जब धृतराष्ट्र, कुंती और गांधारी वानप्रस्थ जीवन जी रहे थे, तब एक दिन युधिष्ठिर आदि सभी पांडव उनसे मिलने पहुंचे। वहां महर्षि वेदव्यास भी आ गए। तब गांधारी की भक्ति से प्रसन्न होकर महर्षि वेदव्यास ने वरदान मांगने को कहा। तब गांधारी ने अपने मृत पुत्रों को देखने की इच्छा प्रकट की। महर्षि वेदव्यास सभी को गंगा नदी के तट पर ले गए और अपनी तपस्या के बल युद्ध में मारे गए सभी योद्धाओं को पुन: प्रकट कर दिया। सुबह होते ही सभी मृत योद्धा पुन: अपने-अपने लोक में चले गए।

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संजय को दी थी दिव्य दृष्टि
कुरुक्षेत्र में पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध शुरू होने से पहले महर्षि वेदव्यास ने ही राजा धृतराष्ट्र के सारथी संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की थी, जिससे संजय ने धृतराष्ट्र को पूरे युद्ध का वर्णन महल में ही सुनाया था। महाभारत के अनुसार, महर्षि वेदव्यास ने 13 वर्ष पहले ही कौरवों सहित संपूर्ण क्षत्रियों के नाश होने की बात युधिष्ठिर को बता दी थी। महर्षि वेदव्यास ने जब कलयुग का बढ़ता प्रभाव देखा तो उन्होंने ही पांडवों को स्वर्ग की यात्रा करने के लिए कहा था।

ऐसे की थी महाभारत की रचना
मन ही मन महाभारत ग्रंथ की रचना करने ने बाद महर्षि वेदव्यास ने इसे लिपिबद्ध करने के विषय में सोचा। तब महर्षि वेदव्यास ने भगवान श्रीगणेश से इसके लिए प्रार्थना की। श्रीगणेश महाभारत लिखने के लिए राजी हो गए, लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी कि महर्षि वेदव्यास एक क्षण के लिए भी रुकेंगे नहीं। मान्यता है कि इस महाकाव्य को पूरा होने में तकरीबन तीन साल का वक्त लगा। इस दौरान गणेश जी ने एक बार भी ऋषि को एक क्षण के लिए भी बोलने से नहीं रोका, वहीं महर्षि ने भी शर्त पूरी की। 

आज भी है वो गुफा जहां लिखी गई महाभारत
महर्षि वेदव्यास और भगवान श्रीगणेश ने जिस स्थान पर बैठकर महाभारत की रचना की, वो स्थान आज भी मौजूद है। ये स्थान उत्तराखंड में मौजूद माणा गांव की एक गुफा है। मान्यता है कि यहीं महाभारत की रचना की गई। व्यास गुफा को बाहर से देखकर ऐसा लगता है मानों कई ग्रंथ एक दूसरे के ऊपर रखे हों, इसलिए इसे व्यास पोथी भी कहते हैं। यह पवित्र स्थान देवभूमि उत्तराखंड में बद्रीनाथ धाम से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर भारतीय सीमा के अंतिम गांव माणा में स्थित है।

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