ये है विवाह की सबसे खास परंपरा, इसके बिना पूरी नहीं होती है शादी, जानिए धार्मिक और मनोवैज्ञानिक कारण

हिंदू विवाह में अनेक परंपराएं निभाई जाती है। कुछ परंपराएं बहुत ही सामान्य होती हैं जबकि कुछ बहुत खास। ऐसी ही एक परंपरा है कन्यादान। कन्यादान का नाम सुनते ही हर माता-पिता का दिल भर आता है जब वे इस पल के बारे में सोचते हैं। लड़की के माता-पिता या पालकों द्वारा इस परंपरा को निभाया जाता है।
 

Asianet News Hindi | Published : Dec 9, 2021 1:27 PM IST / Updated: Dec 10 2021, 10:30 AM IST

उज्जैन. कन्यादान के बिना विवाह अधूरा ही रहता है। इस परंपरा के अनुसार, माता-पिता अपनी पुत्री का दान उसके होने वाले पति को करते हैं। यानी अब उनकी पुत्री का भरण-पोषण आदि सभी जिम्मेदारी पति द्वारा ही पूरी की जाएगी। इस परंपरा से जुड़े कई और पहलू भी हैं, जिनका मनोवैज्ञानिक और धार्मिक महत्व है। इस परंपरा का वर्णन कई ग्रंथों में भी पढ़ने को मिलता है। आगे जानिए इस परंपरा से जुड़ी खास बातें…

कन्यादान को कहा गया है महादान
हिंदू धर्म ग्रंथों के मुताबिक, महादान की श्रेणी में कन्यादान को रखा गया है यानि इससे बड़ा दान कोई नहीं हो सकता। शास्त्रों में कहा गया है कि जब शास्त्रों में बताये गए विधि-विधान के अनुसार, कन्या के माता-पिता कन्यादान करते हैं तो इससे उनके परिवार को भी सौभाग्य की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार, कन्यादान के बाद वधू के लिए उसका मायका पराया हो जाता है और पति का घर यानि ससुराल ही उसका अपना घर हो जाता है। कन्या पर कन्यादान के बाद पिता का नहीं बल्कि पति का अधिकार हो जाता है।

कन्यादान का मनोवैज्ञानिक तथ्य
मान्यताओं के अनुसार, विष्णु रूपी वर की बात करें तो विवाह के समय वह कन्या के पिता को आश्वासन देता है कि वो ताउम्र उनकी पुत्री को खुश रखेगा और उसपर कभी भी कोई आंच नहीं आने देगा। वैसे तो शादी में होने वाली हर रस्म का अलग महत्व होता है, लेकिन हर रस्म का मकसद एक ही है और वो है कि दोनों को अपने रिश्ते और परिवार को चलाने के लिए बराबर का सहयोग देना होगा क्योंकि परिवार किसी एक की जिम्मेदारी नहीं है।

कन्यादान का धार्मिक महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता-पिता कन्यादान करते हैं, उनके लिए इससे बड़ा पुण्य कुछ नहीं है। यह दान उनके लिए मोक्ष की प्राप्ति का साधन होता है। वैसे इस बारे में भी कम लोगों को जानकारी है कि आखिर कन्यादान की रस्म शुरू कैसे हुई थी? पौराणिक कथाओं की मानें तो दक्ष प्रजापति ने अपनी कन्याओं का विवाह करने के बाद कन्यादान किया था। 27 नक्षत्रों को प्रजापति की पुत्री कहा गया है, जिनका विवाह चंद्रमा से हुआ था। इन्होंने ही सबसे पहले अपनी कन्याओं को चंद्रमा को सौंपा था ताकि सृष्टि का संचालन आगे बढ़े और संस्कृति का विकास हो।

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