Valmiki Ramayana: बुरे समय में कौन होता है सबसे बड़ा सहारा, कैसे करें अच्छे इंसान की पहचान?

हिंदू धर्म ग्रंथों में लाइफ मैनेजमेंट से जुड़ी अनेक बातें बताई गई हैं। इन सूत्रों को जीवन में उतारकर हम भी सुखी और सफल हो सकते हैं। रामायण में महर्षि वाल्मीकि ने कुछ ऐसी ज्ञान की बातें बताई हैं जो जीवन को नई दिशा देती हैं।

Asianet News Hindi | Published : Dec 9, 2021 12:36 PM IST

उज्जैन. वाल्मीकि रामायण (Valmiki Ramayana) के कुछ श्लोकों में बताया गया है कि कैसे अच्छे और बुरे इंसान की पहचान कर सकते हैं। वहीं दोस्ती और दुश्मनी से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें भी बताई हैं। इन ज्ञान की बातों को समझकर और अपनाकर आप अपने सोचे हुए काम पूरे कर सकते हैं। नौकरी एवं बिजनेस में आगे बढ़ सकते हैं। आज भी प्रासंगिक हैं महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखी गई बातें। आगे जानिए इन टिप्स के बारे में… 

1. उपकारफलं मित्रमपकारोऽरिलक्षणम्॥ 
अर्थ - मित्र पर उपकार (भला करना) करना मित्रता का लक्षण है और अपकार (बुरा करना) करना शत्रुता का लक्षण है। 

2. उत्साहो बलवानार्य नास्त्युत्साहात्परं बलम्। 
  सोत्साहस्य हि लोकेषु न किञ्चदपि दुर्लभम्॥ 
अर्थ- उत्साह बड़ा बलवान होता है; उत्साह से बढ़कर कोई बल नहीं है। उत्साही पुरुष के लिए संसार में कुछ भी दुर्लभ नहीं है। 

3. निरुत्साहस्य दीनस्य शोकपर्याकुलात्मनः। 
    सर्वार्था व्यवसीदन्ति व्यसनं चाधिगच्छति॥ 
अर्थ- उत्साहहीन, दीन और शोकाकुल मनुष्य के सभी काम बिगड़ जाते हैं, वह घोर विपत्ति में फंस जाता है। इसलिए सदैव उत्साह के साथ काम करने का प्रयास करना चाहिए। 

4. गुणवान् व परजनः स्वजनो निर्गुणोऽपि वा। 
   निर्गुणः स्वजनः श्रेयान् यः परः पर एव सः॥ 
अर्थ - पराया मनुष्य भले ही गुणवान हो तथा स्वजन गुणहीन हो, लेकिन गुणवान परायों से गुणहीन स्वजन ही भले होते हैं।

5. वसेत्सह सपत्नेन क्रुद्धेनाशुविषेण च। 
   न तू मित्रप्रवादेन संवसेच्छत्रु सेविना॥ 
अर्थ- शत्रु और सर्प के साथ भले ही रह लें, लेकिन ऐसे मनुष्य के साथ न रहें, जो ऊपर से तो मित्र और भीतर से शत्रु का हित साधक हो। 

6. सर्वथा सुकरं मित्रं, दुष्करं प्रतिपालनम्॥ 
अर्थ - किसी से भी मित्रता करना सहज है, लेकिन उसको निभाना बहुत कठिन है। 

7. आढ्यतो वापि दरिद्रो वा दुःखित सुखितोऽपिवा।
  निर्दोषश्च सदोषश्च व्यस्यः परमा गतिः॥ 
अर्थ- चाहे धनी हो या निर्धन, दुःखी हो या सुखी, निर्दोष हो या सदोष, मित्र ही मनुष्य का सबसे बड़ा सहारा होता है। 

8. न सुहृद्यो विपन्नार्था दिनमभ्युपपद्यते।
  स बन्धुर्योअपनीतेषु सहाय्यायोपकल्पते॥ 
अर्थ- अच्छा मित्र वही है जो विपत्ति से घिरे मित्र का साथ दे और सच्चा बन्धु वही है जो अपने कुमार्गगामी बन्धु (बुरे रास्ते पर चलने वाले भाई) की भी सहायता करे।
 

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