सार

वैसे तो भगवान श्रीराम के जीवन पर अनेक ग्रंथ लिखे हैं, लेकिन उन सभी में गोस्वामी तुलसीदास (Goswami Tulsidas) जी द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस (Shri Ramcharit Manas) का विशेष महत्व है। इस ग्रंथ में भगवान श्रीराम के जीवन का अद्भुत वर्णन किया गया है।

उज्जैन. मान्यता है कि मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर यह ग्रंथ संपूर्ण हुआ था। इस बार ये तिथि 8 दिसंबर, बुधवार को है। इस अवसर पर प्रमुख राम मंदिरों में धार्मिक आयोजन किए जाते हैं। इस मौके पर हम आपको श्रीरामचरित मानस की कुछ खास चौपाइयों के बारे में बता रहे हैं, जिन्में लाइफ मैनेजमेंट के अनेक सूत्र छिपे हैं। इन लाइफ मैनेजमेंट टिप्स को अपने जीवन में उतारने से आपकी परेशानियां भी दूर हो सकती हैं। 

चौपाई 1
अनुचित उचित काज कछु होई,
समुझि करिय भल कह सब कोई।
सहसा करि पाछे पछिताहीं,
कहहिं बेद बुध ते बुध नाहीं।।  
अर्थ: किसी भी कार्य का परिणाम उचित होगा या अनुचित, यह जानकर करना चाहिए, उसी को सभी लोग भला कहते हैं। जो बिना विचारे काम करते हैं वे बाद में पछताते हैं, उनको वेद और विद्वान कोई भी बुद्धिमान नहीं कहता।

लाइफ मैनेजमेंट- जब भी हम कोई नया कार्य शुरू करें तो पहले उसके बारे में अच्छी तरह से सोच-विचार कर लें। क्या सही रहेगा और क्या गलत। इसके बाद ही कोई निर्णय लें। नहीं तो बाद में पछताने पर सभी हमें मूर्ख ही कहेंगे।

चौपाई 2
बिनु सत्संग विवेक न होई। 
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।।
सठ सुधरहिं सत्संगति पाई।
पारस परस कुघात सुहाई।। 
अर्थ: सत्संग के बिना विवेक नहीं होता और राम जी की कृपा के बिना वह सत्संग नहीं मिलता, सत्संगति आनंद और कल्याण की जड़ है। दुष्ट भी सत्संगति पाकर सुधर जाते हैं जैसे पारस के स्पर्श से लोहा सुंदर सोना बन जाता है।

लाइफ मैनेजमेंट- हम जिन लोगों के साथ रहते हैं, उन्हीं के अनुसार हमारा आचरण और व्यवहार हो जाता है। इसलिए अच्छे लोगों के साथ रहें ताकि उनकी तरह समाज में हमारा भी मान-सम्मान बना रहे।

चौपाई 3
नहिं दरिद्र सम दुख जग माहीं,
संत मिलन सम सुख कछु नाहीं।
पर उपकार बचन मन काया,
संत सहज सुभाव खग राया॥

अर्थ: संसार में दरिद्रता के समान कोई दूसरा दुख नहीं, संत समागम (संतों से मिलन) के समान कोई सुख नहीं है। हे पक्षीराज! वचन मन और शरीर से परोपकार करना संतों का यह स्वभाव है।

लाइफ मैनेजमेंट- जहां भी कोई अच्छी बात कही जा रही हो, थोड़ी देर रुककर सुन लेनी चाहिए। ये छोटी-छोटी बातें ही जीवन में बड़ा फायदा पहुंचा सकती हैं।

चौपाई 4
संत सहहिं दुख परहित लागी,
पर दुख हेतु असंत अभागी।
भूर्ज तरु सम संत कृपाला,
परहित निति सह बिपति बिसाला॥
अर्थ: संत दूसरों की भलाई के लिए दुख सहते हैं और दुर्जन दूसरों को दुख देने के लिए स्वयं कष्ट सहते हैं। संत जन भोजपत्र के समान हैं जो दूसरों के कल्याण के लिए नित्य विपत्ति सहते हैं।( और दुष्टजन पराई संपत्ति नाश करने हेतु स्वयं नष्ट हो जाते हैं, जैसे ओले खेतों को नाश करके स्वयं नष्ट हो जाते हैं।)

लाइफ मैनेजमेंट- दूसरों को दुख पहुंचाकर आप कभी सुखी नहीं हो सकते। इसलिए हमेशा दूसरों की भलाई करने से बारे सोचें न कि उसे नुकसान पहुंचाने के बारे में।

 

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