हमारे देश में समय-समय पर कई बड़े धार्मिक आयोजन किए जाते हैं। इनमें जगन्नाथ रथयात्रा भी एक है। हर साल आषाढ़ मास में उड़ीसा (Orissa) के पुरी (Puri) में इस विशाल और प्रसिद्ध रथयात्रा (Jagannath Rath Yatra 2022) का आयोजन किया जाता है।
उज्जैन. इस बार जगन्नाथ रथयात्रा का आरंभ 1 जुलाई से होगा, जो 10 जुलाई तक चलेगा। ये दक्षिण भारत का सबसे विशाल आयोजन होता है। मान्यता है कि जो भी भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचता है वो जन्म-मरण के बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर लेता है। रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ के साथ-साथ बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र का रथ भी होता है, लेकिन उनकी पत्नी रुक्मिणी या प्रेयसी राधा का रथ नहीं होता। इसके परंपरा के पीछे एक कथा प्रचलित है, जो इस प्रकार है…
जब रात में श्रीकृष्ण ने लिया राधा का नाम
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार भगवान श्रीकृष्ण अपने महल में सो रहे थे। समीप ही उनकी पत्नी रुक्मिणी भी सो रही थीं। तभी अचानक श्रीकृष्ण नींद में ही राधा का नाम लेने लगे। श्रीकृष्ण के मुख से राधा का नाम सुनकर रुक्मिणीजी को बहुत आश्चर्य हुआ। सुबह होते ही देवी रुक्मिणी ने यह बात अन्य पटरानियों को बताई और कहा कि “हमारी इतने सेवा, प्रेम और समर्पण के बाद भी स्वामी राधा को याद करना नहीं भूलते।”
जब रानियों गई माता रोहिणी के पास
इस बात की शिकायत लेकर सभी रानियां माता रोहिणी के पास गईं और उनसे राधा और श्रीकृष्ण की लीला के बारे में जानना चाहा। रानियों के कहने पर माता रोहिणी ने उनकी बात तो मान ली, लेकिन यह शर्त रखी कि “मैं जब तक श्रीकृष्ण-राधा के प्रसंग को सुनाऊं, तब तक कोई भी कमरे के अंदर नहीं आना चाहिए।” रानियों उनकी ये शर्त मान ली और दरवाजे पर निगरानी के लिए श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा को दरवाजे पर खड़ कर दिया।
जब श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा का शरीर गलने लगा
माता रोहिणी ने रुक्मिणी सहित अन्य रानियों को श्रीकृष्ण-राधा की लीला सुनानी शुरू की। तभी सुभद्रा ने देखा कि बलराम और श्रीकृष्ण माता के कमरे की ओर आ रहे हैं। सुभद्रा ने बहाने से उन्हें माता के कमरे में जाने से रोका लेकिन बाहर खड़े होकर भी श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा को रासलीला के प्रसंग सुनाई दे रहे थे। वे तीनों इन प्रसंगों में इतने भाव विभोर हो गए कि उनके शरीर गलने लगे। भगवान श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र ने गलकर लंबा आकार ले लिया।
नारद ने की इसी रूप में दर्शन देने की प्रार्थना
रासलीला के प्रसंग सुनकर जब श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के शरीर गलने लगे तभी वहां से देवर्षि नारद का गुजरना हुआ। वह भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के इस रूप से देखकर अभिभूत हो गए। नारद मुनि ने तीनों से प्रार्थना की कि “मैंने अभी आपके जिस रूप में देखा है, उसी रूप में में आप कलयुग में सभी भक्तों को दर्शन दें। भगवान ने उनकी बात मान ली। यही कारण है भगवान जगन्नाथ को श्रीकृष्ण और राधा का स्वरुप मानकर उनके साथ भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की अधूरी बनी लकड़ी की प्रतिमाओं के साथ रथयात्रा निकालने की परंपरा है।
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