जगन्नाथ मंदिर का रहस्य: खंडित मूर्ति की पूजा होती है अशुभ तो क्यों पूजी जाती है जगन्नाथजी की अधूरी प्रतिमा?

उड़ीसा (Orissa) के पुरी (Puri) में निकाली जाने वाली भगवान जगन्नाथ (Jagannath Rath Yatra 2022) की रथयात्रा को लेकर तैयारियां जोरों पर है। इस बार रथयात्रा 1 जुलाई से शुरू होगी और इसका समापन 10 जुलाई को होगा। विश्व प्रसिद्ध इस रथयात्रा को देखने के लिए देश ही नहीं विदेश से भी लाखों भक्त यहां आते हैं।

उज्जैन. विश्व प्रसिद्ध जगदीश रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ के साथ-साथ बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के रथ में होते हैं। इन रथों को बनाने में कई नियमों का पालन किया जाता है। एक बात जो सबको आश्चर्य में डालने सकती है वो ये है कि जगन्नाथ मंदिर में भगवान की जिन प्रतिमाओं की पूजा की जाती है वो पूर्ण न होकर अपूर्ण यानी अधूरी होती है। हजारों सालों से यहां भगवान जगन्नाथ की अधूरी प्रतिमा की पूजा की जा रही है। सुनने में ये बात अजीब जरूर लगे, लेकिन ये सच है। इस परंपरा से जुड़ी एक कथा भी प्रचलित है, जो इस प्रकार है…

राजा इंद्रद्युम्न ने बनवाई थी भगवान जगन्नाथ की मूर्ति
किसी समय मालव देश के राजा इंद्रद्युम्न थे। वे भगवान जगन्नाथ के परम भक्त थे। एक दिन जब राजा नीलांचल पर्वत पर गए तो वहां उन्हें देव प्रतिमा के दर्शन नहीं हुए।
तभी आकाशवाणी हुई कि शीघ्र ही भगवान जगन्नाथ मूर्ति के रूप में धरती पर प्रकट होंगे। आकाशवाणी सुनकर राजा को प्रसन्नता हुई। कुछ दिनों बाद जब राजा पुरी के समुद्र तट पर घूम रहे थे, तभी उन्हें लकड़ी के दो विशाल टुकड़े तैरते हुए दिखे।  राजा ने उन लकड़ियों को बाहर निकलवाया और सोचा कि इसी से वह भगवान की मूर्तियां बनावाएगा। 

जब विश्वकर्मा ने रखी एक अजीब शर्त
भगवान की आज्ञा से देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा राजा के पास बढ़ई के रूप में आए और उन्होंने लकड़ियों से भगवान की मूर्ति बनाने के लिए राजा से आग्रह किया। राजा ने इसके लिए तुरंत हां कर दी। लेकिन विश्वकर्मा ने शर्त रखी कि वह मूर्ति का निर्माण एकांत में करेंगे, यदि कोई वहां आया तो वह काम अधूरा छोड़कर चले जाएंगे। राजा ने शर्त मान ली। तब विश्वकर्मा ने गुण्डिचा नामक स्थान पर मूर्ति बनाने का काम शुरू किया। 

Latest Videos

इसलिए अधूरी हैं ये देव प्रतिमाएं
भगवान की मूर्ति बनाते-बनाते जब विश्वकर्मा को काफी समय बीत गया तो एक दिन उत्सुकतावश राजा इंद्रद्युम्न उनसे मिलने पहुंच गए। राजा को आया देखकर शर्त के अनुसार, विश्वकर्मा वहां से चले गए और भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा की मूर्तियां अधूरी रह गईं। ये देखकर राजा को काफी दुख हुआ, लेकिन तभी आकाशवाणी हुई कि भगवान इसी रूप में स्थापित होना चाहते हैं। तब राजा इंद्रद्युम ने विशाल मंदिर बनवा कर तीनों मूर्तियों को वहां स्थापित कर दिया।

ऐसे शुरू हुई रथयात्रा की परंपरा
कथाओं के अनुसार, भगवान जगन्नाथ ने ही एक बार राजा इंद्रद्युम्न को दर्शन देकर कहा कि कि वे साल में एक बार अपनी जन्मभूमि यानी गुंडिचा अवश्य जाएंगे। स्कंदपुराण के के अनुसार, राजा इंद्रद्युम्न ने आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को प्रभु को उनकी जन्मभूमि जाने की व्यवस्था की। तभी से यह परंपरा रथयात्रा के रूप में चली आ रही है। एक अन्य मत के अनुसार, सुभद्रा के द्वारिका दर्शन की इच्छा पूरी करने के लिए श्रीकृष्ण व बलराम ने अलग-अलग रथों में बैठकर यात्रा की थी। सुभद्रा की नगर यात्रा की स्मृति में ही यह रथयात्रा पुरी में हर साल होती है।


ये भी पढें...

Jagannath Rath Yatra 2022: रथयात्रा से पहले बीमार क्यों होते हैं भगवान जगन्नाथ, क्या आप जानते हैं ये रहस्य?

Jagannath Rath Yatra 2022: कब से शुरू हो रही जगन्नाथ रथ यात्रा, जानें क्यों निकलती है और क्या है महत्व

Jagannath Rath Yatra 2022: कौन करता है भगवान जगन्नाथ के रथ की रक्षा? ये हैं रथयात्रा से जुड़ी रोचक मान्यताएं

Read more Articles on
Share this article
click me!

Latest Videos

तो क्या खत्म हुआ एकनाथ शिंदे का युग? फडणवीस सरकार में कैसे घटा पूर्व CM का कद? । Eknath Shinde
ठिकाने आई Bangladesh की अक्ल! यूनुस सरकार ने India के सामने फैलाए हाथ । Narendra Modi
Hanuman Ashtami: कब है हनुमान अष्टमी? 9 छोटे-छोटे मंत्र जो दूर कर देंगे बड़ी परेशानी
अब एयरपोर्ट पर लें सस्ती चाय और कॉफी का मजा, राघव चड्ढा ने संसद में उठाया था मुद्दा
बांग्लादेश ने भारत पर लगाया सबसे गंभीर आरोप, मोहम्मद यूनुस सरकार ने पार की सभी हदें । Bangladesh