Jaya Ekadashi 2022: 12 फरवरी को इस आसान विधि से करें जया एकादशी व्रत-पूजा, ये हैं शुभ मुहूर्त

धर्म ग्रंथों के अनुसार, माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया (Jaya Ekadashi 2022), अजा (Aja Ekadashi 2022) और भीष्म एकादशी (Bhishma Ekadashi 2022) कहते हैं। इस बार ये एकादशी 12 फरवरी, शनिवार को है। इस दिन भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए व्रत किया जाता है।
 

Asianet News Hindi | Published : Feb 11, 2022 3:39 AM IST / Updated: Feb 12 2022, 08:48 AM IST

उज्जैन. भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था कि जया एकादशी बहुत ही पुण्यदायी है। इस एकादशी का व्रत विधि-विधान करने से तथा ब्राह्मण को भोजन कराने से व्यक्ति नीच योनि जैसे भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्त हो जाता है। स्कंद, पद्म और विष्णु पुराण के मुताबिक इस एकादशी पर व्रत और भगवान विष्णु की पूजा करने से जाने-अनजाने में हुए पाप खत्म हो जाते हैं। भगवान शिव ने महर्षि नारद को उपदेश देते हुए कहा कि एकादशी महान पुण्य देने वाला व्रत है। श्रेष्ठ मुनियों को भी इसका अनुष्ठान करना चाहिए। आगे जानिए जया एकादशी की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त व कथा…

तिथि एवं पूजा मुहूर्त
एकादशी तिथि आरंभ: 11 फरवरी, शुक्रवार दोपहर 01:52 मिनट से 
एकादशी तिथि समाप्त: 12 फरवरी, शनिवार सायं 04:27 मिनट तक 
जया एकादशी शुभ मुहूर्त:  12 फरवरी, शनिवार, दोपहर 12:13 मिनट से 12:58 तक 

इस विधि से करें जया एकादशी
1.
व्रती (व्रत रखने वाले) दशमी तिथि को भी एक समय भोजन करें। इस बात का ध्यान रखें की भोजन सात्विक हो। 
2. एकादशी तिथि की सुबह स्नान आदि करने के बाद भगवान श्रीविष्णु का ध्यान करके व्रत का संकल्प करें।
3. इसके बाद धूप, दीप, चंदन, फल, तिल, एवं पंचामृत से भगवान विष्णु की पूजा करें। पूरे दिन व्रत रखें। 
4. संभव हो तो रात्रि में भी व्रत रखकर जागरण करें। अगर रात्रि में व्रत संभव न हो तो फलाहार कर सकते हैं।
5. द्वादशी तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उन्हें जनेऊ व सुपारी देकर विदा करें फिर भोजन करें। 
6. इस प्रकार नियमपूर्वक जया एकादशी का व्रत करने से महान पुण्य फल की प्राप्ति होती है और पापों का नाश होता है।
7. धर्म शास्त्रों के अनुसार, जो जया एकादशी का व्रत करते हैं उन्हें पिशाच योनि में जन्म नहीं लेना पड़ता।

जया एकादशी की कथा
एक बार नंदन वन में उत्सव के दौरान माल्यवान नाम का गंधर्व और पुष्यवती नाम की गंधर्व कन्या एक दूसरे पर मोहित हो गए। इससे देवराज इंद्र ने नाराज होकर स्वर्ग से निकालकर पिशाच जीवन जीने का श्राप दे दिया। वो दोनों हिमालय के पास पेड़ पर रहने लगे। इस दौरान गलती से उन दोनों ने अनजाने में माघ मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को केवल एक बार ही फलाहार किया और ठंड के कारण दोनों रातभर जागते रहे। उन्हें रात भर अपनी भूल का पश्चाताप भी हुआ। इससे भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर उन्हें स्वर्ग प्रदान किया। इसके बाद से पिशाच जीवन से मुक्ति पाने के लिए ये व्रत किया जाने लगा।


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