Kaal Bhairav Ashtami 2022: 16 नवंबर, बुधवार को कालभैरव अष्टमी का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन भगवान कालभैरव की पूजा विशेष रूप से की जाएगी और तरह-तरह के भोग भी लगाए जाएंगे। मान्यता के अनुसार, इसी तिथि पर कालभैरव की उत्पत्ति हुई थी।
उज्जैन. मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी का कालभैरव अष्टमी (Kaal Bhairav Ashtami 2022) का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये तिथि 16 नवंबर, बुधवार को है। शिवपुराण के अनुसार, इसी तिथि पर शिवजी के क्रोध से कालभैरव अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इसलिए इस दिन प्रमुख भैरव मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। वैसे तो भगवान कालभैरव को किसी भी चीज का भोग लगा सकते हैं, लेकिन शराब का भोग इन्हें विशेष रूप से लगाया जाता है। भगवान कालभैरव को शराब का भोग क्यों लगाते हैं, ये बात बहुत कम लोग जानते हैं। आज हम आपको इसी के बारे में बता रहे हैं…
हर परंपरा के पीछे होते हैं ये 3 कारण
हिंदू धर्म में किसी भी परंपरा के पीछे तीन कारण बताए गए हैं- पहला धार्मिक, दूसरा वैज्ञानिक और तीसरा मनोवैज्ञानिक। कालभैरव को भोग लगाने के पीछे न तो कोई धार्मिक कारण और न ही कोई वैज्ञानिक। इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारण छिपा है। जब हम भगवान को कुछ भी चढ़ाते हैं तो इसके पीछे का भाव होता है कि हमने ये वस्तु भगवान को अर्पित कर दी और अब इस पर अब हमारा कोई अधिकार नहीं है। कुछ ऐसा ही भाव कालभैरव को शराब चढ़ाने के पीछे भी छिपा है।
इसलिए लगाते हैं कालभैरव को शराब का भोग?
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. प्रवीण द्विवेदी के अनुसार, किसी भी धर्म ग्रंथ में भगवान कालभैरव को शराब का भोग लगाने के बारे में नहीं लिखा गया है। जब हम भगवान कालभैरव को शराब का भोग लगाते हैं तो इसके पीछे हमारा मनोवैज्ञानिक भाव ये होता है कि हमने अपनी बुराइयां यानी शराब भगवान को समर्पित कर दी हैं, अब हम सदैव इस बुराई से दूर रहें, हमें ऐसा आशीर्वाद दीजिए। कालभैरव को चढ़ाई जाने वाली अन्य तामसिक चीजों के पीछे भी यही भाव होता है। ये सभी चीजें बुराई का प्रतीक है। इन्हें भगवान को समर्पित कर हमें इनसे दूर हो जाना चाहिए। यही इस परंपरा का मनोवैज्ञानिक भाव है।
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